ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो, ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो; ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो, हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो! *मय: शराब |
किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई, सबा के पाँव थक गए मगर बहार आ गई; चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं, जली जो कोई शम-ए-गुल कली का दिल बुझा गई! |