Sant Darshan Singh Hindi Shayari

  • ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो,</br>
ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो;</br>
ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो,</br>
हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो!</br></br>
*मय:  शराबUpload to Facebook
    ये किस ने कह दिया आख़िर कि छुप-छुपा के पियो,
    ये मय है मय उसे औरों को भी पिला के पियो;
    ग़म-ए-जहाँ को ग़म-ए-ज़ीस्त को भुला के पियो,
    हसीन गीत मोहब्बत के गुनगुना के पियो!

    *मय: शराब
    ~ Sant Darshan Singh
  • किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई,</br>
सबा के पाँव थक गए मगर बहार आ गई;</br>
चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं,</br>
जली जो कोई शम-ए-गुल कली का दिल बुझा गई!Upload to Facebook
    किसी की शाम-ए-सादगी सहर का रंग पा गई,
    सबा के पाँव थक गए मगर बहार आ गई;
    चमन की जश्न-गाह में उदासियाँ भी कम न थीं,
    जली जो कोई शम-ए-गुल कली का दिल बुझा गई!
    ~ Sant Darshan Singh