तेरी राह-ए-तलब में ज़ख़्म सब सीने पे खाये है; बहार-ए-ग़ुलिस्तां मेरी हयात-ए-जावेदाँ मेरी! |
तेरी राह-ए-तलब में ज़ख़्म सब सीने पे खाये हैं; बहार-ए-ग़ुलिस्तां मेरी हयात-ए-जावेदाँ मेरी! |
मुझे बख्शी ख़ुदा ने कौन रोकेगा ज़ुबाँ मेरी; तुम्हें हर हाल में सुननी पड़ेगी दास्तां मेरी! |
मेरी फितरत को क्या समझेंगे ये ख्वाब-ए-गर्दाँ वाले; सवेरे के सितारे की चमक है राज़दाँ मेरी! |
मेरी आंखों में आँसू हैं ना होठों पे तबस्सुम है; समझ में क्या किसी की आयेगी तर्ज़-ए-फुगां मेरी! |
अब भी लोगों के दिल में ख़र की सूरत खटकता हूँ; अभी तक याद है अहल-ए-चमन को दास्तां मेरी! |