दिल सा वहशी कभी क़ाबू में न आया यारो; हार कर बैठ गए जाल बिछाने वाले! |
जवाज़ कोई अगर मेरी बंदगी का नहीं; मैं पूछता हूँ तुझे क्या मिला ख़ुदा हो कर! * जवाज़: जाइज़ होना |
हमारे पेश-ए-नज़र मंज़िलें कुछ और भी थीं; ये हादसा है कि हम तेरे पास आ पहुँचे! |
जिस को जाना ही नहीं उस को ख़ुदा कैसे कहें; और जिसे जान लिया हो वो ख़ुदा कैसे हो। |
अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है; एक नज़र मेरी तरफ देख, तेरा जाता क्या है; मेरी बर्बादी में तू भी है बराबर का शामिल; मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है! |