हजारों महफिलें हैं और लाखों मेले हैं; पर जहाँ तुम नहीं वहाँ हम अकेले हैं! |
आईना फैला रहा है खुदफरेबी का ये मर्ज; हर किसी से कह रहा है आप सा कोई नहीं! |
तुम से बिछड के फर्क बस इतना हुआ; तेरा गया कुछ नहीँ और मेरा रहा कुछ नहीँ! |
आजाद कर देंगे तुम्हें अपनी चाहत की कैद से; मगर, वो शख्स तो लाओ जो हमसे ज्यादा कदर करे तुम्हारी! |
किन लफ्जों में लिखूँ, मैं अपने इन्तजार को तुम्हें; बेजुबां हैं इश्क़ मेरा, और ढूँढता हैं खामोशी से तुझे! |
करते नहीं इज़हार फिर क्यों करते हो तुम प्यार, नज़रों से बातें बहुत हुई अब लब से करो इकरार। |
हमने हमारे इश्क़ का इज़हार यूँ किया; फूलों से तेरा नाम पत्थरों पे लिख दिया। |
उसको चाहा दिल-ओ-जान से पर इज़हार करना नहीं आया; कट गयी सारी उम्र मगर हमें इश्क़ करना नहीं आया; उसने हमसे कुछ माँगा भी तो माँग ली जुदाई; इश्क़ में उसके डूबे थे हम इस कदर कि हमें इंकार करना नहीं आया। |
जज़्बात मेरे कहीं कुछ खोये हुए से हैं; कहूँ कैसे हम उनसे थोड़ा शर्माए हुए से हैं; पर आज न रोक सकूंगा जज़्बातों को मैं अपने; करते हैं प्यार हम उनसे पर थोड़ा घबराये हुए से हैं। |
कैसे कहूँ कि अपना बना लो मुझे; निगाहों में अपनी समा लो मुझे; आज हिम्मत कर के कहता हूँ; मैं तुम्हारा हूँ अब तुम ही संभालो मुझे। |