तुम्हीं पे मरता है ये दिल, अदावत क्यों नहीं करता; कई जन्मों से बंदी है, बगावत क्यों नहीं करता; कभी तुमसे थी जो, वो ही शिकायत है ज़माने से; मेरी तारीफ़ करता है, मोहब्बत क्यों नहीं करता। |
गम में हूँ या हूँ शाद मुझे खुद पता नहीं; खुद को भी हूँ मैं याद मुझे खुद पता नहीं; मैं तुझ को चाहता हूँ मग़र माँगता नहीं; मौला मेरी मुराद मुझे खुद पता नहीं। |
ये संगदिलों की दुनिया है,संभलकर चलना गालिब; यहाँ पलकों पर बिठाते हैं, नजरों से गिराने के लिए। |
अब क्या जवाब दूँ मैं, कोई मुझे बताये; वह मुझसे कह रहे हैं, क्यों मेरी आरज़ू की। |
तेरा नजरिया मेरे नजरिये से अलग था; शायद तूने वक्त गुजारना था और हमे सारी जिन्दगी! |
दुश्मनों के साथ मेरे दोस्त भी आज़ाद हैं; देखना है, फेंकता है मुझ पर पहला तीर कौन! |
इतने संगदिल ना बनो कुछ तो मुरव्वत सीखो; तुम पर मरते हैं तो क्या मार ही डालोगे! |
मैं तुम्हारी कुछ मिसाल तो दे दूँ मगर जानां; जुल्म ये है कि बे-मिसाल हो तुम! |
तुम हंसो तो दिन, चुप रहो तो रातें हैं; किस का ग़म, कहाँ का ग़म, सब फज़ूल बातें हैं! |
कितना खुशनुमा होगा वो मेरे इँतज़ार का मंजर भी; जब ठुकराने वाले मुझे फिर से पाने के लिये आँसु बहायेंगे! |