जिंदगी जैसे जलानी थी वैसे जला दी हमने गालिब; अब धुएँ पर बहस कैसी और राख पर ऐतराज कैसा! |
कागज की कश्ती में सवार है हम; फिर भी कल के लिये, परेशान है हम! |
हौंसलों का सबूत देना था किसी को; इसलिए ठोकरें खा के भी मुस्कुरा पड़े! |
बड़े महँगे किरदार है ज़िंदगी में, जनाब; समय समय पर सबके भाव बढ़ जाते हैं! |
बड़े महँगे किरदार है ज़िंदगी में, जनाब; समय समय पर सबके भाव बढ़ जाते हैं! |
ज़िंदगी जब जख्म पर दे जख्म तो हँसकर हमें, आजमाइश की हदों को आजमाना चाहिए। |
जिंदगी बस यूँ ही खत्म होती रही, जरुरतें सुलगी, ख्वाहिशें धुँआ होती रहीं! |
अब मौत से कह दो कि नाराज़गी खत्म कर ले, वो बदल गया है जिसके लिए हम ज़िंदा! |
रूठी जो जिदंगी तो मना लेंगे हम, मिले जो गम वो भी सह लेंगे हम, बस आप रहना हमेशा साथ हमारे तो, निकलते हुए आंसुओं में भी मुस्कुरा लेंगे हम। |
न रुकी वक़्त की गर्दिश और न ज़माना बदला; पेड़ सूखा तो परिन्दों ने भी ठिकाना बदला! |