आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद, मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग। |
सारी दुनिया के गम हमारे हैं; और सितम ये कि हम तुम्हारे हैं! |
क़त्ल तो लाजिम है इस बेवफा शहर में; जिसे देखो दिल में नफरत लिये फिरता है। |
इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी; न खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम। |
खता हो गयी तो फिर सज़ा सुना दो, दिल में इतना दर्द क्यों है वजह बता दो; देर हो गयी याद करने में जरूर, लेकिन तुमको भुला देंगे ये ख्याल मिटा दो। |
सुना है उस को मोहब्बत दुआएँ देती हैं; जो दिल पे चोट तो खाए मगर गिला न करे। |
पांवोंं के लड़खड़ाने पे तो सबकी है नज़र; सर पे कितना बोझ है कोई देखता नहीं। |
भीड़ में भी तन्हा रहना मुझको सिखा दिया, तेरी मोहब्बत ने दुनिया को झूठा कहना सिखा दिया; किसी दर्द या ख़ुशी का एहसास नहीं है अब तो, सब कुछ ज़िन्दगी ने चुप-चाप सहना सिखा दिया। |
क्यों बयान करूँ अपने दर्द को? यहाँ सुनने वाले बहुत हैं, पर समझने वाला कोई नहीं! |
हारा हुआ सा लगता है वजूद मेरा; हर एक ने लूटा है दिल का वास्ता देकर! |