उस दिल की बस्ती में आज अजीब सा सन्नाटा है, जिस में कभी तेरी हर बात पर महफिल सजा करती थी। |
बारिश में रख दो इस जिंदगी के पन्नों को, ताकि धुल जाए स्याही, ज़िन्दगी फिर से लिखने का मन करता है कभी - कभी। |
ये जो खामोश से अल्फाज़ लिखेे हैं ना, पढना कभी ध्यान से चीखते कमाल हैं। |
ज़ख़्म दे कर ना पूछा करो दर्द की तुम शिद्दत, दर्द तो दर्द होता हैं, थोड़ा क्या और ज्यादा क्या। |
पत्थर की दुनिया जज़्बात नही समझती, दिल में क्या है वो बात नही समझती, तन्हा तो चाँद भी सितारों के बीच में है, पर चाँद का दर्द वो रात नही समझती। |
कौन चाहता है खुद को बदलना, किसी को प्यार तो किसी को नफरत बदल देती है। |
परछाइयों के शहर की तन्हाईयाँ ना पूछ; अपना शरीक-ए-ग़म कोई अपने सिवा ना था। |
फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने की; निगाहें बदल जाती हैं अपने बेगानों की; तुम भी छोड़कर चले गए हमें; अब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने की। |
ना कोई एहसास हैं, ना कोई जज्बात हैं; बस एक रूह हैं, और कुछ अनकहे अल्फाज हैं। |
बेगाना हमने नहीं किया किसी को, जिसका दिल भरता गया वो हमें छोड़ता गया। |