बेवफ़ाई Hindi Shayari

  • वो मिली भी तो क्या मिली बन के बेवफा मिली,<br/>
इतने तो मेरे गुनाह ना थे जितनी मुझे सजा मिली!Upload to Facebook
    वो मिली भी तो क्या मिली बन के बेवफा मिली,
    इतने तो मेरे गुनाह ना थे जितनी मुझे सजा मिली!
  • उनकी बेवफाई का सिलसिला कुछ यूँ चला मेरे शहर में;<br/>
कि पूरा शहर ही अब दिल लगाने से डरता है!Upload to Facebook
    उनकी बेवफाई का सिलसिला कुछ यूँ चला मेरे शहर में;
    कि पूरा शहर ही अब दिल लगाने से डरता है!
  • इश्क़ होना किसी से नसीब की बात है;<br/>
वह वफादार हों ये भी नसीब की बात है!Upload to Facebook
    इश्क़ होना किसी से नसीब की बात है;
    वह वफादार हों ये भी नसीब की बात है!
  • सच्चाई यह नहीं कि इंसान बदल जाते हैं;<br/>
सच तो यह है कि नकाब उतर जाते हैं!Upload to Facebook
    सच्चाई यह नहीं कि इंसान बदल जाते हैं;
    सच तो यह है कि नकाब उतर जाते हैं!
  • दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बैठे,<br/>
यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बैठे;<br/>
वो हमें एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का,<br/>
और हम उनके लिये ज़िन्दगी लुटा बैठे!Upload to Facebook
    दिल से रोये मगर होंठो से मुस्कुरा बैठे,
    यूँ ही हम किसी से वफ़ा निभा बैठे;
    वो हमें एक लम्हा न दे पाए अपने प्यार का,
    और हम उनके लिये ज़िन्दगी लुटा बैठे!
  • बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,<br/>
ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,<br/>
कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,<br/>
इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ।Upload to Facebook
    बेवफाई उसकी दिल से मिटा के आया हूँ,
    ख़त भी उसके पानी में बहा के आया हूँ,
    कोई पढ़ न ले उस बेवफा की यादों को,
    इसलिए पानी में भी आग लगा कर आया हूँ।
  • तुझे करनी है बेवफाई तो इस अदा से कर;<br/>
कि तेरे बाद कोई बेवफ़ा न लगे।Upload to Facebook
    तुझे करनी है बेवफाई तो इस अदा से कर;
    कि तेरे बाद कोई बेवफ़ा न लगे।
  • जाते जाते उसने पलटकर सिर्फ इतना कहा मुझसे,<br/>

मेरी बेवफाई से ही मर जाओगे या मार के जाऊं।Upload to Facebook
    जाते जाते उसने पलटकर सिर्फ इतना कहा मुझसे,
    मेरी बेवफाई से ही मर जाओगे या मार के जाऊं।
  • नाराज़गी बहुत है हम दोनों के दरमियान;<br/>
वो गलत कहता है कि कोई रिश्ता नहीं रहा!Upload to Facebook
    नाराज़गी बहुत है हम दोनों के दरमियान;
    वो गलत कहता है कि कोई रिश्ता नहीं रहा!
  • इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूम;<br/>
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को मनाने के लिये आ!<br/><br/>
लज़्ज़त-ए-गिरिया: रोने के सुख<br/>
महरूम: वंचित<br/>
राहत-ए-जाँ: जो जान को सुख दे, प्रियेसीUpload to Facebook
    इक उम्र से हूँ लज़्जत-ए-गिरिया से महरूम;
    ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को मनाने के लिये आ!

    लज़्ज़त-ए-गिरिया: रोने के सुख
    महरूम: वंचित
    राहत-ए-जाँ: जो जान को सुख दे, प्रियेसी
    ~ Ahmad Faraz