मैंने पूछा कैसे जान जाते हो मेरे दिल की बातें, वो बोली जब रूह में बसे हो फिर ये सवाल क्यूँ। |
मै भी तलाश में हूँ किसी अपने की; कोई तुम सा हो लेकिन किसी और का ना हो! |
बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए; लीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए! |
एक दूसरे से बिछड़ के हम कितने रंगीले हो गये; मेरी आँखें लाल हो गयी और तेरे हाथ पीले हो गए! |
मेरे हम-सकूँ का यह हुक्म था के कलाम उससे मैं कम करूँ; मेरे होंठ ऐसे सिले के फिर उसे मेरी चुप ने रुला दिया! |
तेरे बदलने के बावसफ भी तुझ को चाहा है; यह एतराफ़ भी शामिल मेरे गुनाहों में है! |
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे; तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे! |
फूल की पती से कट सकता है हीरे का जिगर; मर्दे नादाँ पर कलाम-ऐ-नरम-ऐ-नाज़ुक बेअसर! |
खुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में; माँगा था जिसे हम ने दिन रात दुआओं में; तुम चाट पे नहीं आये मैं घर से नहीं निकल; यह चाँद बहुत भटकता है सावन की घटाओं में! |
तुम्हारे साथ खामोश भी रहूँ तो बातें पूरी हो जाती हैं; तुम में, तुम से, तुम पर ही मेरी दुनिया पूरी हो जाती है! |