दर्द ही दर्द है दिल में बयान कैसे करें, ज़िंदगी ग़मों की गुलाम रिहा कैसे करें, यूँ तो हमें हमारे दिल ने धोखे दिए बहुत, पर अपने दिल से हम दगा कैसे करें। |
रोज एक नई तकलीफ रोज एक नया गम; ना जाने कब एलान होगा कि मर गए हम! |
क्या फूलों की कतरन से बनें हैं तेरे लब; थके हैं मेरे होंठ इन्हें आराम चाहिये! |
शिकवे आँखों से गिर पड़े वरना; होठों से शिकायत कब की हमने! |
मैं एक शब्द हूँ कागज़ पर बिखरा हुआ; तुम विरह की एक अंतहीन कविता हो! |
जख्म नया क्या दोगे; पुराना ही खुरच दो न! |
बंजर नहीं हूं मैं मुझमें बहुत सी नमी है, दर्द बयां नही करता, बस इतनी सी कमी है! |
संभल कर चल नादान, ये इंसानों की बस्ती हैं; ये रब को भी आजमा लेते हैंफिर तेरी क्या हस्ती हैं! |
उसने मुझसे ना जाने क्यों ये दूरी कर ली, बिछड़ के उसने मोहब्बत ही अधूरी कर दी, मेरे मुकद्दर में दर्द आया तो क्या हुआ, खुदा ने उसकी ख्वाहिश तो पूरी कर दी। |
यारों कुछ तो जिक्र करो, उनकी क़यामत बाहों का, जो सिमटते होंगें उनमे, वो तो मर जाते होंगे! |