भरे बाज़ार से अक्सर मैं ख़ाली हाथ आता हूँ, कभी ख्वाहिश नहीं होती कभी पैसे नहीं होते। |
डूबी हैं मेरी उँगलियाँ मेरे ही खून में, ये काँच के टुकड़ों पर भरोसे की सजा है। |
दर्द सहने की इतनी आदत सी हो गई है, कि अब दर्द ना मिले तो बहुत दर्द होता है। |
छुपाने लगा हूँ आजकल कुछ राज अपने आप से; सुना है कुछ लोग मुझको मुझसे ज्यादा जानने लगे हैं। |
वो मुस्कान थी, कहीं खो गयी; और मैं जज्बात था कहीं बिखर गया। |
तू हवा के रुख पे चाहतों का दिया जलाने की ज़िद न कर; ये क़ातिलों का शहर है यहाँ तू मुस्कुराने की ज़िद न कर। |
कुछ रूठे हुए लम्हें कुछ टूटे हुए रिश्ते, हर कदम पर काँच बन कर जख्म देते हैं। |
हजारों हैं मेरे अल्फाज के दीवाने; मेरी खामोशी सुनने वाला कोई होता तो क्या बात थी। |
ख्यालों में तेरी तस्वीर रख कर चूम लेता हूँ, हथेली पर तुम्हारा नाम लिख कर चूम लेता हूँ; तुम्हारे आँख के आँसू जो मुझ को याद आते हैं, तो मैं चुपके से खुद आँसू बहाकर चूम लेता हूँ। |
तकलीफ़ मिट गयी मगर एहसास रह गया; ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मेरे पास रह गया। |