सिर्फ़ एक क़दम उठा था ग़लत राह-ए-शौक़ में; मंज़िल तमाम उम्र मुझे ढूँढती रही! |
इजाज़त हो तो मैं तस्दीक़ कर लूँ तेरी ज़ुल्फ़ों से; सुना है ज़िंदगी इक ख़ूबसूरत दाम है साक़ी! *तस्दीक़: सच्चे होने की ताईद करना, सच्चा बताना |
कभी तो दैर-ओ-हरम से तू आएगा वापस; मैं मय-कदे में तेरा इंतज़ार कर लूँगा! *मय-कदे: शराब पीने का स्थान, मदिरालय |
एक हसीन आँख के इशारे पर; क़ाफ़िले राह भूल जाते हैं! |
तकलीफ़ मिट गई मगर एहसास रह गया; ख़ुश हूँ कि कुछ न कुछ तो मेरे पास रह गया! |
साक़ी मुझे शराब की तोहमत नहीं पसंद; मुझ को तेरी निग़ाह का इल्ज़ाम चाहिए! |
बारिश शराब-ए-अर्श है ये सोच कर 'अदम'; बारिश के सब हुरूफ़ को उल्टा के पी गया! |
मैं बद-नसीब हूँ मुझ को न दे ख़ुशी इतनी; कि मैं ख़ुशी को भी ले कर ख़राब कर दूँगा! |
हम उस से थोड़ी दूरी पर हमेशा रुक से जाते हैं; न जाने उस से मिलने का इरादा कैसा लगता है; मैं धीरे धीरे उन का दुश्मन-ए-जाँ बनता जाता हूँ; वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है। |
साग़र से लब लगा के... साग़र से लब लगा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; सहन-ए-चमन में आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; आ जाओ और भी ज़रा नज़दीक जान-ए-मन; तुम को क़रीब पाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; होता कोई महल भी तो क्या पूछते हो फिर; बे-वजह मुस्कुरा के बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; साहिल पे भी तो इतनी शगुफ़ता रविश न थी; तूफ़ाँ के बीच आके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी; वीरान दिल है और 'अदम' ज़िन्दगी का रक़्स; जंगल में घर बनाके बहुत ख़ुश है ज़िन्दगी। |