उनका तगाफुल उनकी तवज्जो; एक दिल, उस पे लाख तहल्के। Meaning: 1.तगाफुल - उपेक्षा, वेबवज्जुही 2.तवज्जो - विशेष ध्यान |
ख़ुद हिजाबों सा ख़ुद जमाल सा था; दिल का आलम भी बे-मिसाल सा था; अक्स मेरा भी आइनों में नहीं; वो भी कैफ़ियत-ए-ख़याल सा था; दश्त में सामने था ख़ेमा-ए-गुल; दूरियों में अजब कमाल सा था; बे-सबब तो नहीं था आँखों में; एक मौसम के ला-ज़वाल सा था; ख़ौफ़ अँधेरों का डर उजालों से; सानेहा था तो हस्ब-ए-हाल सा था; क्या क़यामत है हुज्ला-ए-जाँ में; उस के होते हुए मलाल सा था; जिस की जानिब 'अदा' नज़र न उठी; हाल उस का भी मेरे हाल सा था। |
शायद अभी है राख में कोई... शायद अभी है राख में कोई शरार भी; क्यों इंतज़ार भी है इज़्तिरार भी; ध्यान आ गया है मर्ग-ए-दिल-ए-नामुराद का; मिलने को मिल गया है सुकूँ भी क़रार भी; अब ढूँढने चले हो मुसाफ़िर को दोस्तो; हद-ए-निगाह तक न रहा जब ग़ुबार भी; हर आस्ताँ पे नासियाफ़र्सा हैं आज वो; जो कल न कर सके थे तेरा इन्तज़ार भी; इक राह रुक गई तो ठिठक क्यों गई आद; आबाद बस्तियाँ हैं पहाड़ों के पार भी। |
घर का रस्ता... घर का रस्ता भी मिला था शायद; राह में संग-ए-वफ़ा था शायद; इस क़दर तेज़ हवा के झोंके; शाख़ पर फूल खिला था शायद; जिस की बातों के फ़साने लिखे; उस ने तो कुछ न कहा था शायद; लोग बे-मेहर न होते होंगे; वहम सा दिल को हुआ था शायद; तुझ को भूले तो दुआ तक भूले; और वही वक़्त-ए-दुआ था शायद; ख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लम; और फिर कुछ न लिखा था शायद; दिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदा' पहले आँखों में रचा था शायद। |
काँटा सा जो चुभा था... काँटा सा जो चुभा था वो लौ दे गया है क्या; घुलता हुआ लहू में ये ख़ुर्शीद सा है क्या; पलकों के बीच सारे उजाले सिमट गए; साया न साथ दे ये वही मरहला है क्या; मैं आँधियों के पास तलाश-ए-सबा में हूँ; तुम मुझ से पूछते हो मेरा हौसला है क्या; साग़र हूँ और मौज के हर दाएरे में हूँ; साहिल पे कोई नक़्श-ए-क़दम खो गया है क्या; सौ सौ तरह लिखा तो सही हर्फ़-ए-आरज़ू; इक हर्फ़-ए-आरज़ू ही मेरी इंतिहा है क्या; क्या फिर किसी ने क़र्ज़-ए-मुरव्वत अदा किया; क्यों आँख बे-सवाल है दिल फिर दुखा है क्या। |
होंठो पे कभी उनके मेरा नाम ही आये; आये तो सही बर-सर-ए-इलज़ाम ही आये; हैरान हैं लब-बस्ता हैं दिल-गीर हैं गुंचे; खुशबू की जुबानी तेरा पैगाम ही आये। |
गुलों को छू के शमीम-ए-दुआ नहीं आई; खुला हुआ था दरीचा सबा नहीं आई; हवा-ए-दश्त अभी तो जुनूँ का मौसम था; कहाँ थे हम तेरी आवाज़ नहीं आई। |
घर का रास्ता भी मिला था शायद... घर का रास्ता भी मिला था शायद; राह में संग-ए-वफ़ा था शायद; इस क़दर तेज़ हवा के झोंके; शाख़ पर फूल खिला था शायद; जिस की बातों के फ़साने लिखे; उस ने तो कुछ न कहा था शायद; लोग बे-मेहर न होते होंगे; वहम सा दिल को हुआ था शायद; तुझ को भूले तो दुआ तक भूले; और वही वक़्त-ए-दुआ था शायद; ख़ून-ए-दिल में तो डुबोया था क़लम; और फिर कुछ न लिखा था शायद; दिल का जो रंग है ये रंग-ए-'अदा'; पहले आँखों में रचा था शायद। |
बदले तो नहीं हैं वो दिल-ओ-जान के क़रीने; आँखों की जलन, दिल की चुभन अब भी वही है। |