Ahmad Nadeem Qasmi Hindi Shayari

  • आज की रात भी तन्हा ही कटी;<br/>
आज के दिन भी अंधेरा होगा!Upload to Facebook
    आज की रात भी तन्हा ही कटी;
    आज के दिन भी अंधेरा होगा!
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ;<br/>

मेरे हमराह दरिया जा रहा है!Upload to Facebook
    मैं कश्ती में अकेला तो नहीं हूँ;
    मेरे हमराह दरिया जा रहा है!
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ;
    हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं;

    तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था;
    मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ;

    सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें;
    मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ;

    वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल;
    यूं तो मैं तूटते तारों का धुआं तक देखूँ;

    दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता;
    मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ;

    एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद;
    हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • किस को क़ातिल मैं कहूँ...

    किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ;
    सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूँ

    वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था;
    अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ;

    दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे;
    ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ;

    ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी;
    लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • जाने कहाँ थे और और चले थे कहाँ से हम;
    बेदार हो गए किसी ख्वाब-ए-गिराँ से हम;
    ऐ नौ-बहार-ए-नाज़ तेरी निकहतों की खैर;
    दामन झटक के निकले तेरे गुलसिताँ से हम।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • फ़क़त इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें;
    मैं तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयाँ तक देखूँ।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • क्या भला मुझ को...

    क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकला;
    ज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकला;

    तोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूने;
    तेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकला;

    जब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई ने;
    बू उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकला;

    तिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों पर;
    डूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • मैं समझता था कि लौट आते हैं जाने वाले
    तूने जा कर तो जुदाई मेरी क़िस्मत कर दी।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ;
    हुस्न-ए-यज़्दां से तुझे हुस्न-ए-बुतां तक देखूं;

    तूने यूं देखा है जैसे कभी देखा ही न था;
    मैं तो दिल में तेरे क़दमों के निशां तक देखूँ;

    सिर्फ़ इस शौक़ में पूछी हैं हज़ारों बातें;
    मै तेरा हुस्न तेरे हुस्न-ए-बयां तक देखूँ;

    वक़्त ने ज़ेहन में धुंधला दिये तेरे खद्द-ओ-खाल;
    यूं तो मैं तूटते तारों का धुआं तक देखूँ;

    दिल गया था तो ये आँखें भी कोई ले जाता;
    मैं फ़क़त एक ही तस्वीर कहाँ तक देखूँ;

    एक हक़ीक़त सही फ़िरदौस में हूरों का वजूद;
    हुस्न-ए-इन्सां से निपट लूं तो वहाँ तक देखूँ।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi
  • तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत...

    तुझे इज़हार-ए-मोहब्बत से अगर नफ़रत है;
    तूने होठों के लरज़ने को तो रोका होता;

    बे-नियाज़ी से, मगर कांपती आवाज़ के साथ;
    तूने घबरा के मेरा नाम न पूछा होता;

    तेरे बस में थी अगर मशाल-ए-जज़्बात की लौ;
    तेरे रुख्सार में गुलज़ार न भड़का होता;

    यूं तो मुझसे हुई सिर्फ़ आब-ओ-हवा की बातें;
    अपने टूटे हुए फ़िरक़ों को तो परखा होता;

    यूं ही बेवजह ठिठकने की ज़रूरत क्या थी;
    दम-ए-रुख्सत में अगर याद न आया होता।
    ~ Ahmad Nadeem Qasmi