भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें; आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें। |
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे; तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे; खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के; वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे; सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं; तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें; उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली; हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे; बोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना; तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे; असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में; परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे। |
तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे; तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे; खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के; वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे; सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं; तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें; उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली; हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे; बोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना; तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे; असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में; परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे। |
मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना; तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना; तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई; तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना। |
मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना; तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना; तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई; तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना; शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो; अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना; तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते; पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना; इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का; तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना; अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी; तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना। |
फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया; अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया; हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में; इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया; रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर; यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया; कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से; फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया; इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें; दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया; ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की; लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया। |
ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले; तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले; एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है; जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले। |
मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना; तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना; तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई; तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना; शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो; अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना; तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते; पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना; इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का; तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना; अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी; तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना। |
फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया; अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया; हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में; इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया; रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर; यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया; कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से; फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया; इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें; दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया; ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की; लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया। |
ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले; तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले; एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है; जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले। |