Aitbar Sajid Hindi Shayari

  • भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें;<br/>
आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें।Upload to Facebook
    भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलें;
    आ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें।
    ~ Aitbar Sajid
  • तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे;
    तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे;

    खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के;
    वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे;

    सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं;
    तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें;

    उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली;
    हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे;

    बोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना;
    तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे;

    असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में;
    परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे।
    ~ Aitbar Sajid
  • तुम्हारे जैसे लोग जबसे मेहरबान नहीं रहे;
    तभी से ये मेरे जमीन-ओ-आसमान नहीं रहे;

    खंडहर का रूप धरने लगे है बाग शहर के;
    वो फूल-ओ-दरख्त, वो समर यहाँ नहीं रहे;

    सब अपनी अपनी सोच अपनी फिकर के असीर हैं;
    तुम्हारें शहर में मेरे मिजाज़ दा नहीं रहें;

    उसे ये गम है, शहर ने हमारी बात जान ली;
    हमें ये दुःख है उस के रंज भी निहां नहीं रहे;

    बोहत है यूँ तो मेरे इर्द-गिर्द मेरे आशना;
    तुम्हारे बाद धडकनों के राजदान नहीं रहे;

    असीर हो के रह गए हैं शहर की फिजाओं में;
    परिंदे वाकई चमन के तर्जुमान नहीं रहे।
    ~ Aitbar Sajid
  • मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;<br />
तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;<br />

तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;<br />
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना।Upload to Facebook
    मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;
    तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;
    तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;
    तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना।
    ~ Aitbar Sajid
  • मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;
    तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;

    तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;
    तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना;

    शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो;
    अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;

    तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते;
    पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना;

    इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का;
    तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना;

    अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी;
    तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।
    ~ Aitbar Sajid
  • फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया;
    अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया;

    हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में;
    इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया;

    रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर;
    यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया;

    कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से;
    फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया;

    इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें;
    दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया;

    ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की;
    लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।
    ~ Aitbar Sajid
  • ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले;
    तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले;
    एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है;
    जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले।
    ~ Aitbar Sajid
  • मेरी रातों की राहत, दिन के इत्मिनान ले जाना;
    तुम्हारे काम आ जायेगा, यह सामान ले जाना;

    तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई;
    तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना;

    शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर, चुन लो;
    अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना;

    तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते;
    पुरानी दोस्ती है, की कुछ पहचान ले जाना;

    इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का;
    तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना;

    अगर थोड़ी बहुत है, शायरी से उनको दिलचस्पी;
    तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना।
    ~ Aitbar Sajid
  • फिर उसके जाते ही दिल सुनसान हो कर रह गया;
    अच्छा भला इक शहर वीरान हो कर रह गया;

    हर नक्श बतल हो गया अब के दयार-ए-हिज्र में;
    इक ज़ख्म गुज़रे वक्त की पहचान हो कर रह गया;

    रुत ने मेरे चारों तरफ खींचें हिसार-ए-बाम-ओ-दर;
    यह शहर फिर मेरे लिए ज़ान्दान हो कर रह गया;

    कुछ दिन मुझे आवाज़ दी लोगों ने उस के नाम से;
    फिर शहर भर में वो मेरी पहचान हो कर रह गया;

    इक ख्वाब हो कर रह गई गुलशन से अपनी निस्बतें;
    दिल रेज़ा रेज़ा कांच का गुलदान हो कर रह गया;

    ख्वाहिश तो थी "साजिद" मुझे तशीर-ए-मेहर-ओ-माह की;
    लेकिन फ़क़त मैं साहिब-ए-दीवान हो कर रह गया।
    ~ Aitbar Sajid
  • ऐसा नहीं के तेरे बाद अहल-ए-करम नहीं मिले;
    तुझ सा नहीं मिला कोई, लोग तो कम नहीं मिले;
    एक तेरी जुदाई के दर्द की बात और है;
    जिन को न सह सके ये दिल, ऐसे तो गम नहीं मिले।
    ~ Aitbar Sajid