Akhtar Sheerani Hindi Shayari

  • दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी;</br>
'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए!</br>
*मय-कदे: शराबख़ानाUpload to Facebook
    दिन रात मय-कदे में गुज़रती थी ज़िंदगी;
    'अख़्तर' वो बे-ख़ुदी के ज़माने किधर गए!
    *मय-कदे: शराबख़ाना
    ~ Akhtar Sheerani
  • ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में;</br>
हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है!</br></br>
*तसव्वुर: कल्पनाUpload to Facebook
    ख़फ़ा हैं फिर भी आ कर छेड़ जाते हैं तसव्वुर में;
    हमारे हाल पर कुछ मेहरबानी अब भी होती है!

    *तसव्वुर: कल्पना
    ~ Akhtar Sheerani
  • ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना;</br>
ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते!Upload to Facebook
    ग़म-ए-ज़माना ने मजबूर कर दिया वर्ना;
    ये आरज़ू थी कि बस तेरी आरज़ू करते!
    ~ Akhtar Sheerani
  • उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है;</br>
दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है!</br></br>
* हया: शर्म</br>
* क़ज़ा: मृत्युUpload to Facebook
    उन रस भरी आँखों में हया खेल रही है;
    दो ज़हर के प्यालों में क़ज़ा खेल रही है!

    * हया: शर्म
    * क़ज़ा: मृत्यु
    ~ Akhtar Sheerani
  • काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें;</br>
फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें!Upload to Facebook
    काँटों से दिल लगाओ जो ता-उम्र साथ दें;
    फूलों का क्या जो साँस की गर्मी न सह सकें!
    ~ Akhtar Sheerani
  • आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या;<br/>
क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या!Upload to Facebook
    आरज़ू वस्ल की रखती है परेशाँ क्या क्या;
    क्या बताऊँ कि मेरे दिल में है अरमाँ क्या क्या!
    ~ Akhtar Sheerani
  • इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा;<br/>
अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है!Upload to Facebook
    इन्हीं ग़म की घटाओं से ख़ुशी का चाँद निकलेगा;
    अँधेरी रात के पर्दे में दिन की रौशनी भी है!
    ~ Akhtar Sheerani
  • जवानी हो ग़र जावेदानी तो यारब;<br/>
तेरी सादा दुनिया को जन्नत बना दें!Upload to Facebook
    जवानी हो ग़र जावेदानी तो यारब;
    तेरी सादा दुनिया को जन्नत बना दें!
    ~ Akhtar Sheerani
  • ऐ दिल वो आशिक़ी के फ़साने किधर गए,
    वो उम्र क्या हुई वो ज़माने किधर गए;

    वीराँ हैं सहन-ओ-बाग़ बहारों को क्या हुआ,
    वो बुलबुलें कहाँ वो तराने किधर गए;

    है नज्द में सुकूत हवाओं को क्या हुआ,
    लैलाएँ हैं ख़मोश दिवाने किधर गए;

    उजड़े पड़े हैं दश्त ग़ज़ालों पे क्या बनी,
    सूने हैं कोहसार दिवाने किधर गए;
    v वो हिज्र में विसाल की उम्मीद क्या हुई,
    वो रंज में ख़ुशी के बहाने किधर गए;

    दिन रात मैकदे में गुज़रती थी ज़िन्दगी,
    'अख़्तर' वो बेख़ुदी के ज़माने किधर गए।
    ~ Akhtar Sheerani
  • कुछ तो तन्हाई की रातों में सहारा होता;
    तुम न होते न सही ज़िक्र तुम्हारा होता;

    तर्क-ए-दुनिया का ये दावा है फ़ुज़ूल ऐ ज़ाहिद;
    बार-ए-हस्ती तो ज़रा सर से उतारा होता;

    वो अगर आ न सके मौत ही आई होती;
    हिज्र में कोई तो ग़म-ख़्वार हमारा होता;

    ज़िन्दगी कितनी मुसर्रत से गुज़रती या रब;
    ऐश की तरह अगर ग़म भी गवारा होता;

    अज़मत-ए-गिर्या को कोताह-नज़र क्या समझें;
    अश्क अगर अश्क न होता तो सितारा होता;

    कोई हम-दर्द ज़माने में न पाया 'अख़्तर';
    दिल को हसरत ही रही कोई हमारा होता।
    ~ Akhtar Sheerani