Asif Raza Hindi Shayari

  • सफ़ीना ग़र्क़ हुआ मेरा यूँ ख़ामोशी से;
    के सतह-ए-आब पे कोई हबाब तक न उठा;

    समझ न इज्ज़ इसे तेरे पर्दा-दार थे हम;
    हमारा हाथ जो तेरे नक़ाब तक न उठा;

    झिंझोड़ते रहे घबरा के वो मुझे लेकिन;
    मैं अपनी नींद से यौम-ए-हिसाब तक न उठा;

    जतन तो ख़ूब किए उस ने टालने के मगर;
    मैं उस की बज़्म से उस के जवाब तक न उठा।
    ~ Asif Raza
  • ये दिल में वसवसा क्या पल रहा है;
    तेरा मिलना भी मुझ को खल रहा है;

    जिसे मैंने किया था बे-ख़ुदी में;
    जबीं पर अब वो सजदा जल रहा है;

    मुझे मत दो मुबारक-बाद-ए-हस्ती;
    किसी का है ये साया चल रहा है;

    सर-ए-सहरा सदा दिल के शजर से;
    बरसता दूर एक बादल रहा है;

    फ़साद-ए-लग़्ज़िश-ए-तख़लीक़-ए-आदम;
    अभी तक हाथ यज़दाँ मल रहा है;

    दिलों की आग क्या काफ़ी नहीं है;
    जहन्नम बे-ज़रूरत जल रहा है।
    ~ Asif Raza