बहुत मुश्किल है दुनिया का सँवरना; तिरी ज़ुल्फ़ों का पेच-ओ-ख़म नहीं है! |
आँख से आँख जब नहीं मिलती; दिल से दिल हम-कलाम होता है! |
सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके; सब के तो गिरेबाँ सी डाले अपना ही गिरेबाँ भूल गए। |
ख़िरद वालों से हुस्न ओ इश्क़ की तन्क़ीद क्या होगी; न अफ़्सून-ए-निगह समझा न अंदाज़-ए-नज़र जाना। शब्दार्थ: अफ़्सून-ए-निगह = नज़र का जादू |