Azhar Inayati Hindi Shayari

  • हर एक रात को महताब देखने के लिए;</br>
मैं जागता हूँ तेरा ख़्वाब देखने के लिए!</br>
*महताब: चाँदUpload to Facebook
    हर एक रात को महताब देखने के लिए;
    मैं जागता हूँ तेरा ख़्वाब देखने के लिए!
    *महताब: चाँद
    ~ Azhar Inayati
  • कभी क़रीब कभी दूर हो के रोते हैं;
    मोहब्बतों के भी मौसम अजीब होते हैं;

    ज़िहानतों को कहाँ वक़्त ख़ूँ बहाने का;
    हमारे शहर में किरदार क़त्ल होते हैं;

    फ़ज़ा में हम ही बनाते हैं आग के मंज़र;
    समंदरों में हमीं कश्तियाँ डुबोते हैं;

    पलट चलें के ग़लत आ गए हमीं शायद;
    रईस लोगों से मिलने के वक़्त होते हैं;

    मैं उस दियार में हूँ बे-सुकून बरसों से;
    जहाँ सुकून से अजदाद मेरे सोते हैं;

    गुज़ार देते हैं उम्रें ख़ुलूस की ख़ातिर;
    पुराने लोग भी 'अज़हर' अजीब होते हैं।
    ~ Azhar Inayati
  • इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए;
    उन की सहेलियों के भी आँचल भिगो गए;
    चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर;
    जो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गए।
    ~ Azhar Inayati
  • इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए;
    उन की सहेलियों के भी आँचल भिगो गए;

    चौराहों का तो हुस्न बढ़ा शहर के मगर;
    जो लोग नामवर थे वो पत्थर के हो गए;

    सब देख कर गुज़र गए एक पल में और हम;
    दीवार पर बने हुए मंज़र में खो गए;

    मुझ को भी जागने की अज़ीयत से दे नजात;
    ऐ रात अब तो घर के दर ओ बाम सो गए;

    किस किस से और जाने मोहब्बत जताते हम;
    अच्छा हुआ कि बाल ये चाँदी के हो गए;

    इतनी लहू-लुहान तो पहले फ़ज़ा न थी;
    शायद हमारी आँखों में अब ज़ख़्म हो गए;

    इख़्लास का मुज़ाहिरा करने जो आए थे;
    'अज़हर' तमाम ज़ेहन में काँटे चुभो गए।
    ~ Azhar Inayati
  • ग़मों से यूँ वो फ़रार...

    ग़मों से यूँ वो फ़रार इख़्तियार करता था;
    फ़ज़ा में उड़ते परिंदे शुमार करता था;

    बयान करता था दरिया के पार के क़िस्से;
    ये और बात वो दरिया न पार करता था;

    बिछड़ के एक ही बस्ती में दोनों ज़िंदा हैं;
    मैं उस से इश्क़ तो वो मुझ से प्यार करता था;

    यूँ ही था शहर की शख़्सियतों को रंज उस से;
    कि वो ज़िदें भी बड़ी पुर-वक़ार करता था;

    कल अपनी जान को दिन में बचा नहीं पाया;
    वो आदमी के जो आहाट पे वार करता था;

    सदाक़तें थीं मेरी बंदगी में जब 'अज़हर';
    हिफ़ाज़तें मेरी परवर-दिगार करता था।
    ~ Azhar Inayati
  • अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास;<br/>
कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना।Upload to Facebook
    अपनी तस्वीर बनाओगे तो होगा एहसास;
    कितना दुश्वार है ख़ुद को कोई चेहरा देना।
    ~ Azhar Inayati
  • अभी महफ़िल में चेहरे नादान नज़र आते हैं;
    लौ चिरागों की ज़रा और घटा दी जाये।
    ~ Azhar Inayati