रफ़्ता रफ़्ता ये पल भी गुज़र जाएगा, शाम होते ही परिंदा सज़र जाएगा; जरूरी नहीं हर आशिक़ को जहर ही पिलाना, इश्क़ में है वो ख़ुद तड़प के मर जाएगा! |
ये माना के वो मेरा यार नहीं है, ऐसा भी नहीं के प्यार नहीं है; ऐसे कैसे उसे मैं दिल से निकालूं, वो मालिक है इसका किरायेदार नहीं है! |