एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया; वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया; यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं; तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया; उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा; उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया; दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत; लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया; अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है; पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया; अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई; रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया। |
तपिश से बच के घटाओं में बैठ जाते हैं; गए हुए कि सदाओं में बैठ जाते हैं; हम इर्द-गिर्द के मौसम से घबरायें; तेरे ख्यालों की छाओं में बैठ जाते हैं। |
तपिश से बच कर घटाओं में बैठ जाते हैं; गए हुए की सदाओं में बैठ जाते हैं; हम इर्द-गिर्द के मौसम से जब भी घबराये; तेरे ख्याल की छाओं में बैठ जाते हैं। |
इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगे; मैं थक के छाँव में बैठा और पाँव चलने लगे; मैं दे रहा था सहारे तो एक हजूम में था; जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे। |