Farhat Abbas Shah Hindi Shayari

  • एक क़तरा मलाल भी बोया नहीं गया;
    वो खौफ था के लोगों से रोया नहीं गया;

    यह सच है के तेरी भी नींदें उजड़ गयीं;
    तुझ से बिछड़ के हम से भी सोया नहीं गया;

    उस रात तू भी पहले सा अपना नहीं लगा;
    उस रात खुल के मुझसे भी रोया नहीं गया;

    दामन है ख़ुश्क आँख भी चुप चाप है बहुत;
    लड़ियों में आंसुओं को पिरोया नहीं गया;

    अलफ़ाज़ तल्ख़ बात का अंदाज़ सर्द है;
    पिछला मलाल आज भी गोया नहीं गया;

    अब भी कहीं कहीं पे है कालख लगी हुई;
    रंजिश का दाग़ ठीक से धोया नहीं गया।
    ~ Farhat Abbas Shah
  • तपिश से बच के घटाओं में बैठ जाते हैं;
    गए हुए कि सदाओं में बैठ जाते हैं;
    हम इर्द-गिर्द के मौसम से घबरायें;
    तेरे ख्यालों की छाओं में बैठ जाते हैं।
    ~ Farhat Abbas Shah
  • तपिश से बच कर घटाओं में बैठ जाते हैं;
    गए हुए की सदाओं में बैठ जाते हैं;
    हम इर्द-गिर्द के मौसम से जब भी घबराये;
    तेरे ख्याल की छाओं में बैठ जाते हैं।
    ~ Farhat Abbas Shah
  • इसी से जान गया मैं कि वक़्त ढलने लगे;
    मैं थक के छाँव में बैठा और पाँव चलने लगे;
    मैं दे रहा था सहारे तो एक हजूम में था;
    जो गिर पड़ा तो सभी रास्ता बदलने लगे।
    ~ Farhat Abbas Shah