Ghulam Rabbani Taban Hindi Shayari

  • आज किसी ने बातों बातों में...

    आज किसी ने बातों बातों में, जब उन का नाम लिया;
    दिल ने जैसे ठोकर खाई, दर्द ने बढ़कर थाम लिया;

    घर से दामन झाड़ के निकले, वहशत का सामान न पूछ;
    यानी गर्द-ए-राह से हमने, रख़्त-ए-सफ़र का काम लिया;

    दीवारों के साये-साये, उम्र बिताई दीवाने;
    मुफ़्त में तनासानि-ए-ग़म का अपने पर इल्ज़ाम लिया;

    राह-ए-तलब में चलते चलते, थक के जब हम चूर हुए;
    ज़ुल्फ़ की ठंडी छांव में बैठे, पल दो पल आराम लिया;

    होंठ जलें या सीना सुलगे, कोई तरस कब खाता है;
    जाम उसी का जिसने 'ताबाँ', जुर्रत से कुछ काम लिया।
    ~ Ghulam Rabbani Taban
  • गुलों के साथ अजल के...

    गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए;
    बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए;

    हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना;
    हज़ार बार किसी के पयाम भी आए;

    चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी;
    जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए;

    जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे;
    हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए;

    बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ';
    रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए।
    ~ Ghulam Rabbani Taban