आज किसी ने बातों बातों में... आज किसी ने बातों बातों में, जब उन का नाम लिया; दिल ने जैसे ठोकर खाई, दर्द ने बढ़कर थाम लिया; घर से दामन झाड़ के निकले, वहशत का सामान न पूछ; यानी गर्द-ए-राह से हमने, रख़्त-ए-सफ़र का काम लिया; दीवारों के साये-साये, उम्र बिताई दीवाने; मुफ़्त में तनासानि-ए-ग़म का अपने पर इल्ज़ाम लिया; राह-ए-तलब में चलते चलते, थक के जब हम चूर हुए; ज़ुल्फ़ की ठंडी छांव में बैठे, पल दो पल आराम लिया; होंठ जलें या सीना सुलगे, कोई तरस कब खाता है; जाम उसी का जिसने 'ताबाँ', जुर्रत से कुछ काम लिया। |
गुलों के साथ अजल के... गुलों के साथ अजल के पयाम भी आए; बहार आई तो गुलशन में दाम भी आए; हमीं न कर सके तज्दीद-ए-आरज़ू वरना; हज़ार बार किसी के पयाम भी आए; चला न काम अगर चे ब-ज़ोम-ए-राह-बरी; जनाब-ए-ख़िज़्र अलैहिस-सलाम भी आए; जो तिश्ना-ए-काम-ए-अज़ल थे वो तिश्ना-काम रहे; हज़ार दौर में मीना ओ जाम भी आए; बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'; रह-ए-हयात में ऐसे मक़ाम भी आए। |