सोचा था घर बना कर बैठुंगा सुकून से; पर घर की ज़रूरतों ने मुसाफ़िर बना डाला। |
ना इश्क़ का इज़हार किया, ना ठुकरा सके हमें वो; हम तमाम ज़िंदगी मज़लूम रहे, उनके वादा मोहब्बत के। |
इश्क़ की बंदगी दी है तो हुस्न की इबादत जरूरी है; इश्क़ से जीने की आस रहेगी और हुस्न से तड़प का सकून। |
आँखों में इश्क़, लब पे ख़ामोशी; अंदाज़ में इकरार, जिस्म में इंकार; कहाँ जाएं मोहब्बत करने वाले; एक तरफ जन्नत, दूसरी तरफ जहन्नुम। |
हुस्न भी था, कशिश भी थी; अंदाज़ भी था, नक़ाब भी था; हया भी थी, प्यार भी था; अगर कुछ ना था तो बस इकरार। |
हमें अपने हबीब से यही एक शिकायत है; ज़िंदगी में तो आए नहीं, लेकिन हमें सपनों में सताते रहे। |
ख्याल में वो... ख्याल में वो, बेसुरती में वो; आँखों में वो, अक्स में वो; ख़ुशी में वो, दर्द में वो; आब में वो, शराब में वो; लाभ में वो, बेहिसाब में वो; मेरे अब हो लो, या जान मेरी लो। |
ये इश्क़ के घाव बहुत गहरे है; दर्द भी देते हैं और भरते भी नहीं। |