ग़ैरों से तो फ़ुर्सत तुम्हें दिन रात नहीं है; हाँ मेरे लिए वक़्त-ए-मुलाक़ात नहीं है! |
समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने; दिल से तो पूछ लीजिए क्यों बे-क़रार है! |
भाँप ही लेंगे इशारा सर-ए-महफ़िल जो किया; ताड़ने वाले क़यामत की नज़र रखते हैं। |
जो दोस्त हैं वो माँगते हैं सुल्ह की दुआ; दुश्मन ये चाहते हैं कि आपस में जंग हो! |
तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ; ये पंखुड़ी से होंठ ये गुल सा बदन कहाँ! |
न वो सूरत दिखाते हैं न मिलते हैं गले आकर; न आँखें शाद होतीं हैं न दिल मसरूर होता है! *शाद: ख़ुश |
लड़ने को दिल जो चाहे तो आँखें लड़ाइए; हो जंग भी अगर तो मज़ेदार जंग हो! |
अरमान वस्ल का मेरी नज़रों से ताड़ के; पहले से ही वो बैठ गए मुँह बिगाड़ के! |