Munawwar Rana Hindi Shayari

  • अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा;</br>
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!Upload to Facebook
    अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा;
    मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है!
    ~ Munawwar Rana
  • चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है;</br>
मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!Upload to Facebook
    चलती फिरती हुई आँखों से अज़ाँ देखी है;
    मैंने जन्नत तो नहीं देखी है माँ देखी है!
    ~ Munawwar Rana
  • एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है;<br />
तुम ने देखा नहीं आँखों का समंदर होना!Upload to Facebook
    एक आँसू भी हुकूमत के लिए ख़तरा है;
    तुम ने देखा नहीं आँखों का समंदर होना!
    ~ Munawwar Rana
  • अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो;<br/>
तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो!Upload to Facebook
    अब जुदाई के सफ़र को मिरे आसान करो;
    तुम मुझे ख़्वाब में आ कर न परेशान करो!
    ~ Munawwar Rana
  • तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो;<br/>
तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है!Upload to Facebook
    तुम्हारी आँखों की तौहीन है ज़रा सोचो;
    तुम्हारा चाहने वाला शराब पीता है!
    ~ Munawwar Rana
  • लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती;<br/>
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती।Upload to Facebook
    लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती;
    बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती।
    ~ Munawwar Rana
  • मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू;<br/>
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।Upload to Facebook
    मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू;
    मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना।
    ~ Munawwar Rana
  • मैं वो मेले में भटकता हुआ एक बच्चा हूँ,<br/>
जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है;<br/>
एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर,<br/>
इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है।Upload to Facebook
    मैं वो मेले में भटकता हुआ एक बच्चा हूँ,
    जिसके माँ-बाप को रोते हुए मर जाना है;
    एक बेनाम से रिश्ते की तमन्ना लेकर,
    इस कबूतर को किसी छत पे उतर जाना है।
    ~ Munawwar Rana
  • हर एक चेहरा यहाँ पर गुलाल होता है;
    हमारे शहर में पत्थर भी लाल होता है;

    मैं शोहरतों की बुलंदी पर जा नहीं सकता;
    जहाँ उरूज पर पहुँचो ज़वाल होता है;

    मैं अपने बच्चों को कुछ भी तो दे नहीं पाया;
    कभी-कभी मुझे ख़ुद भी मलाल होता है;

    यहीं से अमन की तबलीग रोज़ होती है;
    यहीं पे रोज़ कबूतर हलाल होता है;

    मैं अपने आप को सय्यद तो लिख नहीं सकता;
    अजान देने से कोई बिलाल होता है;

    पड़ोसियों की दुकानें तक नहीं खुलतीं;
    किसी का गाँव में जब इन्तिकाल होता है।
    ~ Munawwar Rana
  • सियासी आदमी की शक्ल तो प्यारी निकलती है;
    मगर जब गुफ़्तगू करता है चिंगारी निकलती है;
    लबों पर मुस्कुराहट दिल में बेज़ारी निकलती है;
    बड़े लोगों में ही अक्सर ये बीमारी निकलती है।
    ~ Munawwar Rana