Pirzada Qasim Hindi Shayari

  • खून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ;
    फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ;
    महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गयी;
    फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ।
    ~ Pirzada Qasim
  • ख़ून से जब जला दिया...

    ख़ून से जब जला दिया एक दिया बुझा हुआ;
    फिर मुझे दे दिया गया एक दिया बुझा हुआ;

    महफ़िल-ए-रंग-ओ-नूर की फिर मुझे याद आ गई;
    फिर मुझे याद आ गया एक दिया बुझा हुआ;

    मुझ को निशात से फ़ुजूँ रस्म-ए-वफ़ा अज़ीज़ है;
    मेरा रफी़क़-ए-शब रहा एक दिया बुझा हुआ;

    दर्द की कायनात में मुझ से भी रौशनी रही;
    वैसे मेरी बिसात क्या एक दिया बुझा हुआ;

    सब मेरी रौशनी-ए-जाँ हर्फ़-ए-सुख़न में ढल गई;
    और मैं जैसे रह गया एक दिया बुझा हुआ।
    ~ Pirzada Qasim
  • शहर अगर तलब करे तुम से इलाज-ए-तीरगी;
    साहिब-ए-इख़्तियार हो आग लगा दिया करो।

    अनुवाद:
    इलाज-ए-तीरगी = अंधेरे के लिए इलाज
    साहिब-ए-इख़्तियार = अधिकारिक व्यक्ति
    ~ Pirzada Qasim