ग़म मुझे देते हो औरों की ख़ुशी के वास्ते; क्यों बुरे बनते हो तुम नाहक़ किसी के वास्ते! *नाहक़: अनुचित रूप से और अकारण |
रोते जो आए थे रुला के गए; इब्तिदा इंतेहा को रोते हैं! |
क्या शक्ल है वस्ल में किसी की; तस्वीर हैं अपनी बेबसी की! |
मय रहे, मीना रहे... मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है, कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं, रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है, अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो, उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों, शीशे की परी हो,घर परीखाना रहे। |
मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में... मय रहे, मीना रहे, ग़र्दिश में पैमाना रहे; मेरे साक़ी तू रहे, आबाद मयखाना रहे; हश्र भी तो हो चुका, रुख़ से नहीं हटती नक़ाब; हद भी आख़िर कुछ है, कब तक कोई दीवाना रहे; रात को जा बैठते हैं, रोज़ हम मजनूं के पास; पहले अनबन रह चुकी है, अब तो याराना रहे; ज़िन्दगी का लुत्फ़ हो, उड़ती रहे हरदम रियाज़; हम हों, शीशे की परी हो,घर परीखाना रहे। |
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को रियाज़; मुझ से लिपटे हैं मिरे नाम से डरने वाले। |
क्या मज़ा देती है बिजली की चमक मुझ को 'रियाज़'; मुझ से लिपटे हैं मेरे नाम से डरने वाले। |