बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे; पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले! |
ज़ाहिद शराब पीने से काफ़िर हुआ मैं क्यूँ; क्या डेढ़ चुल्लू पानी में ईमान बह गया! |
ऐ ज़ौक़ देख दुख़्तर-ए-रज़ को न मुँह लगा, छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़र लगी हुई। |
मालूम जो होता हमें अंजाम-ए-मोहब्बत; लेते न कभी भूल के हम नाम-ए-मोहब्बत। |
दुनिया ने किस का राह-ए-वफ़ा में दिया है साथ; तुम भी चले चलो यूँ ही जब तक चली चले। |
चुपके चुपके कोई गम का खाना हम से सीख जाये; जी ही जी में तिलमिलाना कोई हम से सीख जाये; अब्र क्या आँसू बहाना कोई हमसे सीख जाये; बर्क क्या है तिलमिलाना कोई हम से सीख जाये। |
क्या आये तुम जो आये घडी दो घडी के बाद; सीने में होगी सांस अड़ी दो घडी के बाद; क्या रोका अपने गिर्ये को हम ने कि लग गयी; फिर वही आँसुओं की झड़ी दो घडी के बाद। |
किसी बेकस को ऐ बेदाद गर मारा तो क्या मारा; जो आप ही मर रहा हो उस को गर मारा तो क्या मारा। |