Shujaat Khan Hindi Shayari

  • ज़िंदगी से बड़ी सज़ा ही नहीं, और क्या जुर्म है पता ही नहीं;
    इतने हिस्सों में बट गया हूँ मैं, मेरे हिस्से में कुछ बचा ही नहीं!
    ~ Shujaat Khan