वैसे तो एक आँसू ही बहा कर मुझे ले जाए; ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता! |
वो पूछता था मेरी आँख भीगने का सबब; मुझे बहाना बनाना भी तो नहीं आया! |
चिराग घर का हो महफ़िल का हो कि मंदिर का; हवा के पास कोई मस्लहत नहीं होती! *मस्लहत: भला बुरा देख कर काम करना |
झूठ वाले कहीं से कहीं बढ़ गए; और मैं था कि सच बोलता रह गया! |
शाम तक सुब्ह की नज़रों से उतर जाते हैं; इतने समझौतों पे जीते हैं कि मर जाते हैं! |
आते आते मेरा नाम सा रह गया; उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया! |
हमारे घर का पता पूछने से क्या हासिल; उदासियों की कोई शहरियत नहीं होती! *शहरियत: सभ्यता, शिष्टता, नागरिकता। |
दुख अपना अगर हम को बताना नहीं आता; तुम को भी तो अंदाज़ा लगाना नहीं आता! |
वैसे तो इक आँसू भी बहाकर मुझे ले जाए; ऐसे कोई तूफ़ान हिला भी नहीं सकता! |
आते हैं आने दो ये तूफ़ान क्या ले जाएंगे; मैं तो जब डरता कि मेरा हौसला ले जाएंगे! |