गुनाह गिन के मैं क्यों अपने दिल को छोटा करूँ; सुना है तेरे करम का कोई हिसाब नहीं! |
पहाड़ काटने वाले ज़मीन से हार गए; इसी ज़मीन में दरिया समाए हैं क्या क्या! |
मुझे दिल कि ख़ता पर 'यास' शरमाना नहीं आता; पराया जुर्म अपने नाम लिखवाना नहीं आता! |
मेरी बहार-ओ-खिज़ां जिसके इख्तियार में थी; मिजाज़ उस दिल-ए-बेइख्तियार का न मिला। खिज़ां = पतझड़ मिजाज़ = मुलाकात |