तेरा इश्क़ ही है मेरी बंदगी, मुझे और कुछ तो खबर नहीं; तुझे देख कर देखूँ और कहीं, अब मेरे पास वो नज़र नहीं! |
गीली लकड़ी सा इश्क तुमने सुलगाया है; न पूरा जल पाया कभी न ही बुझ पाया है! |
उसके लिये तो मैंने यहा तक दुआएं की है; कि कोई उसे चाहे भी तो बस मेरी तरह चाहे! |
एहसासों की अगर जुबाँ होती; दुनियां फिर खूबसूरत कहाँ होती; लफ़्ज़ बन जातें हैं पर्दे जज़्बात के; अजी फिर कैसे ये मोहोब्बत बयाँ होती! |
लिख दूं किताबें तेरी मासूमियत पर, फिर डर लगता है; कहीं हर कोई तुझे पाने का तलबगार ना हो जाये! |
उम्र निसार दूं तेरी उस एक नज़र पे; जो तू मुझे देखे और मैं तेरा हो जाउं! |
राख से भी आएगी खुशबू मोहब्बत की; मेरे खत तुम सरेआम जलाया ना करो! |
वो सज़दा ही क्या, जिसमे सर उठाने का होश रहे; इज़हार-ए-इश्क़ का मजा तब, जब मैं बेचैन रहूँ और वो ख़ामोश रहे! |
चलेगा मुक़दमा आसमान में सब आशिकों पर एक दिन; जिसे देखो अपने महबूब को चाँद जो बताता है! |
तुम्हारी दुनिया से जाने के बाद; हम तुम्हें हर एक तारे में नज़र आया करेंगे; तुम हर पल कोई दुआ माँग लेना; और हम हर पल टूट जाया करेंगे! |