दुनिया में मत ढूंढ नाम ए वफ़ा 'फ़राज़'; दिलों से खेलते हैं लोग बना के हमसफ़र अपना। |
ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी; ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी; बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत; जब आयी हमारी बारी तो स्याही ही ख़त्म हो गयी। |
दिल वो नगर नहीं है कि फिर आबाद हो सके; पछताओगे सुनो हो ये बस्ती उजाड़ कर। |
मोहब्बत मुक़द्दर है एक ख्वाब नहीं; ये वो अदा है जिसमे सब कामयाब नहीं; जिन्हें पनाह मिली उन्हें उँगलियों पर गिन लो; मगर जो फना हुए उनका कोई हिसाब नहीं। |
सपना हैं आँखों में मगर नींद नहीं है; दिल तो है जिस्म में मगर धड़कन नहीं है; कैसे बयाँ करें हम अपना हाल-ए-दिल; जी तो रहें हैं मगर ये ज़िंदगी नहीं है। |
तेरी महफ़िल से उठे तो किसी को खबर तक ना थी, तेरा मुड़-मुड़कर देखना हमें बदनाम कर गया। |
मंजिल भी उसकी थी, रास्ता भी उसका था; एक मैं अकेला था, बाकी काफिला भी उसका था; साथ-साथ चलने की सोच भी उसकी थी; फ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उसका था। |
इश्क़ करना तो लगता है जैसे मौत से भी बड़ी एक सज़ा है; क्या किसी से शिकायत करें जब अपनी तक़दीर ही बेवफा है। |
तुम्हारी नफरत पर भी लुटा दी ज़िन्दगी हमने; सोचो अगर तुम मोहब्बत करते तो हम क्या करते। |
दोस्ती किस से न थी किस से मुझे प्यार न था; जब बुरे वक़्त पे देखा तो कोई यार न था। |