ग़ज़ल Hindi Shayari

  • वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे;
    चाँद कहते हैं किसे ख़ूब समझते होंगे!
    इतनी मिलती है मेरी ग़ज़लों से सूरत तेरी;
    लोग तुझको मेरा महबूब समझते होंगे!
    ~ बशीर बद्र
  • आते आते मेरा नाम सा रह गया;<br />
उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया!Upload to Facebook
    आते आते मेरा नाम सा रह गया;
    उस के होंठों पे कुछ काँपता रह गया!
    ~ Wasim Barelvi
  • शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई:

    शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई,
    दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई;

    बज़्म-ए-ख़याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई,
    दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई;

    जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी,
    जब तेरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई;

    दिल से तो हर मुआमला कर के चले थे साफ़ हम,
    कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई;

    आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए,
    रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई!
    ~ Faiz Ahmad Faiz
  • उसके क़दमों में:

    उसके क़दमों में अब हयात रख के,
    लौट आया मैं दिल की बात रख के;

    ये क्या कम है इतना जी गया हूँ मैं,
    उसके ग़म को अपने साथ रख के;

    वफ़ा ना कर पाया तेरी यादों से भी,
    रुखसत करता हूँ इन्हें रात रख के;

    लिख के इक ग़ज़ल फिर तुम्हारे लिए,
    सो गया हूँ सिरहाने जज़्बात रख के;

    रूह फिर से छटपटाने सी लगी है,
    वो आ बैठा है क़ब्र पे हाथ रख के|
  • ज़हर देता है कोई:

    ज़हर देता है कोई, कोई दवा देता है,
    जो भी मिलता है, मेरा दर्द बढ़ा देता है;

    किसी हमदम का, सरे शाम ख़याल आ जाना,
    नींद जलती हुई आँखों की उड़ा देता है;

    प्यास इतनी है मेरी, रूह की गहराई में,
    अश्क गिरता है तो, दामन को जला देता है;

    किसने माज़ी के दरीचों से, पुकारा है मुझे,
    कौन भूली हुई राहों से, सदा देता है;

    वक़्त ही दर्द के, काँटों पे सुलाए दिल को,
    वक़्त ही दर्द का, एहसास मिटा देता है;

    रोने से तसल्ली कभी हो जाती थी,
    अब तबस्सुम मेरे होटों को जला देता है!
  • ज़रा सी ज़िन्दगी:

    ज़रा सी ज़िन्दगी में, व्यवधान बहुत हैं,
    तमाशा देखने को यहां, इंसान बहुत हैं!

    कोई भी नहीं बताता, ठीक रास्ता यहां,
    अजीब से इस शहर में, 'नादान' बहुत हैं!

    न करना भरोसा भूल कर भी किसी पे,
    यहां हर गली में साहब बेईमान बहुत हैं!

    दौड़ते फिरते हैं, न जाने क्या पाने को,
    लगे रहते हैं जुगाड में, परेशान बहुत है!

    खुद ही बनाते हैं हम, पेचीदा ज़िन्दगी को,
    वर्ना तो जीने के नुस्खे, आसान बहुत हैं!
  • उलझनों और कश्मकश में:

    उलझनों और कश्मकश में, उम्मीद की ढाल लिए बैठा हूँ;
    ए जिंदगी तेरी हर चाल के लिए, मैं दो चाल लिए बैठा हूँ,

    लुत्फ़ उठा रहा हूँ मैं भी आँख - मिचोली का;
    मिलेगी कामयाबी, हौसला कमाल का लिए बैठा हूँ,

    चल मान लिया दो-चार दिन नहीं मेरे मुताबिक;
    गिरेबान में अपने, ये सुनहरा साल लिए बैठा हूँ,

    ये गहराइयां, ये लहरें, ये तूफां, तुम्हे मुबारक;
    मुझे क्या फ़िक्र मैं कश्तीया और दोस्त बेमिसाल लिए बैठा हूँ!
  • अब तेरे शहर में:

    अब तेरे शहर में रहने को बचा ही क्या है,
    जुदाई सह ली तो सहने को बचा ही क्या है;

    सब अजनबी हैं, तेरे नाम से जाने मुझको,
    पढ़ने वाला नहीं, लिखने को बचा ही क्या है,

    ये भी सच है कि मेरा नाम आशिकों में नहीं,
    बनके दीवाना तेरा, उछलने में रखा ही क्या है;

    तू ही तू था कभी, अब मैं भी ना रहा,
    वो जलवा भी नहीं मिटने को बचा ही क्या है;

    मरना बाकी है तो, मर भी जायेंगे एक दिन,
    सुनने बाला नहीं, कहने को बचा ही क्या है।
  • हवस की बस्तियों में:

    हवस की बस्तियों में यूँ गुजारा कर लिया हमने,
    ज़मीर मार डाला खुद इशारा कर लिया हमने;

    मुझे शक है कि मंदिर में कभी भगवान रहते थे,
    बढ़ी हैवानियत से कब्जा सारा कर लिया हमने;

    दरिंदे नन्ही कलियों को कुचल कर फेंक देते हैं,
    ज़ालिम सल्तनत में हैं गंवारा कर लिया हमने;

    अगर हैं बागबां करता शिकायत कोई हाकिम से,
    तो उसको मार देते हैं नजारा कर लिया हमने;

    बढ़ो आगे जुबां खोलो अगर थोड़े भी जिंदा हो,
    कभी ये सोचना भी मत किनारा कर लिया हमने!
  • वो मोहब्बतें जो तुम्हारे:

    वो मोहब्बतें जो तुम्हारे दिल में है,
    उससे जुबां पर लाओ और बयां कर दो;

    आज बस तुम कहो और कहते ही जाओ,
    हम बस सुनें ऐसा बे -ज़ुबान कर दो;

    आ जाओ के ऐसा टूट कर चाहूँ तुम्हें,
    हमारी मोहब्बत को मोहब्बत का निशान कर दो;

    अपने दिल में इस तरह छुपा लो मुझ को,
    राहों हमेशा इसमें इससे मेरा जहाँ कर दो|