ग़ज़ल Hindi Shayari

  • कभी अकेले में मिल...

    ​कभी अकेले में मिल कर झंझोड़ दूंगा उसे​;
    ​जहाँ​-​जहाँ से वो टूटा है​ ​जोड़ दूंगा उसे;​​
    ​​​
    ​मुझे छोड़ गया ​ ​ये कमाल है​ ​उस का​;
    ​इरादा मैंने किया था के छोड़ दूंगा उसे​;

    ​पसीने बांटता फिरता है हर तरफ सूरज​;
    ​कभी जो हाथ लगा तो निचोड़ दूंगा उसे​;

    ​मज़ा चखा के ही माना हूँ ​मैं भी दुनिया को​;
    ​समझ रही थी के ऐसे ही ​छोड़ दूंगा उसे​;

    ​बचा के रखता है​ खुद को वो मुझ से शीशाबदन​;​
    उसे ये डर है के तोड़​-​फोड़ दूंगा उसे​।
    ~ Rahat Indori
  • ​​​दम लबों पर था​...

    ​दम लबों पर था​, दिलेज़ार के घबराने से​;​
    आ गई है जाँ में जाँ​, आपके आ जाने से;​

    ​​तेरा कूचा न छूटेगा​, तेरे दीवाने से​;
    उस को काबे से न मतलब है​, न बुतख़ाने से​;

    ​ शेख़ नाफ़ह्म हैं​, करते जो नहीं​, क़द्र उसकी​;
    दिल फ़रिश्तों के मिले हैं​, तेरे दीवानों से​;

    ​मैं जो कहता हूँ​, कि मरता हूँ​, तो फ़रमाते हैं​;
    ​कारे-दुनिया न रुकेगा​, तेरे मर जाने से​।
    ~ Akbar Allahabadi
  • रोज़ तारों की नुमाइश में...

    रोज़ तारों की नुमाइश में ख़लल पड़ता है;
    चाँद पागल है अँधेरे में निकल पड़ता है;

    एक दीवाना मुसाफ़िर है मेरी आँखों में;
    वक़्त-बे-वक़्त ठहर जाता है, चल पड़ता है;

    रोज़ पत्थर की हिमायत में ग़ज़ल लिखते है;
    रोज़ शीशों से कोई काम निकल पड़ता है;

    उसकी याद आई है, साँसों ज़रा आहिस्ता चलो;
    धडकनों से भी इबादत में ख़लल पड़ता है।
    ~ Rahat Indori
  • अपने पहाड़ ग़ैर के....

    अपने पहाड़ ग़ैर के गुलज़ार हो गये;
    वे भी हमारी राह की दीवार हो गये;

    फल पक चुका है शाख़ पर गर्मी की धूप में;
    हम अपने दिल की आग में तैयार हो गये;

    हम पहले नर्म पत्तों की इक शाख़ थे मगर;
    काटे गये हैं इतने कि तलवार हो गये;

    बाज़ार में बिकी हुई चीजों की माँग है;
    हम इस लिये ख़ुद अपने ख़रीदार हो गये;

    ताजा लहू भरा था सुनहरे गुलाब में;
    इन्कार करने वाले गुनहगार हो गये;

    वो सरकशों के पाँव की ज़ंजीर थे कभी;
    अब बुज़दिलों के हाथ में तलवार हो गये।
    ~ Bashir Badr
  • ​​​हमारी ज़िन्दगी का​...
    ​​
    ​​हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है​;
    ​कभी गाड़ी पलटती है कभी तिरपाल कटता है​;​

    ​​दिखाते हैं पड़ोसी मुल्क आँखें तो दिखाने दो​;​
    कहीं बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है​;​

    इसी उलझन में अकसर रात आँखों में गुज़रती है​;​
    बरेली को बचाते हैं तो नैनीताल कटता है​;​

    ​​ कभी रातों के सन्नाटे में भी निकला करो घर से​;​
    कभी देखा करो गाड़ी से कैसे माल कटता है​;​

    ​​ सियासी वार भी तलवार से कुछ कम नहीं होता​;​
    कभी कश्मीर जाता है कभी बंगाल कटता है​।
    ~ Munawwar Rana
  • मोहब्बतों में दिखावे की​...

    मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला​;​
    ​अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला​;​

    ​घरों पे नाम थे, नामों के साथ ओहदे थे;​
    बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला​;​
    ​​
    तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था​;​​
    फ़िर उस के बाद मुझे कोई अजनबी न मिला​;​

    ​ख़ुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैनें​;​​
    बस एक शख्स को माँगा मुझे वही न मिला​;

    ​बहुत अजीब है ये नजदीकियों की दूरी भी​; ​
    ​वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला।
    ~ Bashir Badr
  • मुझ पर नहीं उठे हैं​...​
    ​ ​
    ​ मुझ पर नहीं उठे हैं तो उठकर कहाँ गए​​;
    ​​ मैं शहर में नहीं था तो पत्थर कहाँ गए​​;​​

    ​​​ मैं खुद ही मेज़बान हूँ मेहमान भी हूँ ख़ुद​​;
    ​​ सब लोग मुझको घर पे बुलाकर कहाँ गए​​;

    ​​ ​ ये कैसी रौशनी है कि एहसास बुझ गया​​;
    ​ ​ हर आँख पूछती है कि मंज़र कहाँ गए​​;​​
    ​​​​
    ​ पिछले दिनों की आँधी में गुम्बद तो गिर चुका​​;
    ​अल्लाह जाने सारे कबूतर कहाँ गए​।
    ~ Rahat Indori
  • प्यास वो दिल की​...

    प्यास वो दिल की बुझाने कभी आया भी नहीं​;
    ​कैसा बादल है जिसका कोई साया भी नहीं​;

    ​बेरुख़ी इससे बड़ी और भला क्या होगी​;
    ​एक मुद्दत से हमें उस ने सताया भी नहीं​;

    ​​ रोज़ आता है दर-ए-दिल पे वो दस्तक देने​;
    ​आज तक हमने जिसे पास बुलाया भी नहीं​;

    ​​ सुन लिया कैसे ख़ुदा जाने ज़माने भर ने​;
    ​ वो फ़साना जो कभी हमने सुनाया भी नहीं​;

    ​​ तुम तो शायर हो "क़तील" और वो इक आम सा शख़्स​;
    ​ उसने चाहा भी तुझे और जताया भी नहीं​।
    ~ Qateel Shifai
  • मुझसे बिछड़ के​...

    ​मुझसे बिछड़ के ख़ुश रहते हो​;
    ​मेरी तरह तुम भी झूठे हो​​;
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    ​​इक टहनी पर चाँद टिका था​​;
    ​मैं ये समझा तुम बैठे हो​​;
    ​​
    ​​उजले-उजले फूल खिले थे​​;
    ​बिल्कुल जैसे तुम हँसते हो​​;
    ​​
    ​​मुझ को शाम बता देती है​​;
    ​तुम कैसे कपड़े पहने हो​​;
    ​​
    ​​तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे;
    ​बच्चों सी बातें करते हो​।
    ~ Bashir Badr
  • अजनबी ख्वाहिशें​...​ ​
    ​​
    अजनबी ख्वाहिशें सीने में दबा भी न सकूँ​;​​​
    ऐसे जिद्दी हैं परिन्दें कि उड़ा भी न सकूँ​;​

    फूँक डालूँगा किसी रोज़ मैं दिल की दुनिया​;​​
    ​ये तेरा ख़त तो नहीं है कि जला भी न सकूँ​;​​

    ​मेरी ग़ैरत भी कोई शय है कि महफ़िल में मुझे​;​​
    ​उसने इस तरह बुलाया कि मैं जा भी न सकूँ​;​​

    ​इक न इक रोज़ कहीं ढूंढ ही लूँगा तुझको​;​​
    ​ठोकरें ज़हर नहीं हैं कि मैं खा भी न सकूँ​।
    ~ Rahat Indori