तेरे मिलने को... तेरे मिलने को बेकल हो गये हैं; मगर ये लोग पागल हो गये हैं; बहारें लेके आये थे जहाँ तुम; वो घर सुनसान जंगल हो गये हैं; यहाँ तक बढ़ गये आलाम-ए-हस्ती; कि दिल के हौसले शल हो गये हैं; कहाँ तक ताब लाये नातवाँ दिल; कि सदमे अब मुसलसल हो गये हैं; निगाह-ए-यास को नींद आ रही है; मुसर्दा पुरअश्क बोझल हो गये हैं; उन्हें सदियों न भूलेगा ज़माना; यहाँ जो हादसे कल हो गये हैं; जिन्हें हम देख कर जीते थे 'नासिर'; वो लोग आँखों से ओझल हो गये है। |
तेरे इश्क़ की इन्तहा... तेरे इश्क़ की इन्तहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ; सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी; कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ; ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को; कि मैं आप का सामना चाहता हूँ; कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल; चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ; भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी; बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ। |
वो तो ख़ुश्बू है... वो तो ख़ुश्बू है हवाओं में बिखर जायेगा; मसला फूल का है फूल किधर जायेगा; हम तो समझे थे के एक ज़ख़्म है भर जायेगा; क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगा; वो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता है; एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगा; वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लिये; मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगा; आख़िरश वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी; तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा। |
तुने ये फूल जो... तुने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है; एक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है; जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला; ज़िन्दगी ने मुझे दाओ पे लगा रखा है; जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला; इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है; इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे; मैंने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है। |
तेरे ख़याल से... तेरे ख़याल से लौ दे उठी है तन्हाई; शब-ए-फ़िराक़ है या तेरी जलवाआराई; तू किस ख़याल में है ऐ मन्ज़िलों क्के शादाई; उन्हें भी देख जिन्हें रास्ते में नींद आई; पुकार ऐ जरस-ए-कारवान-ए-सुबह-ए-तरब; भटक रहे हैं अँधेरों में तेरे सौदाई; रह-ए-हयात में कुछ मरकले देख लिये; ये और बात तेरी आरज़ू न रास आई; ये सानिहा भी मुहब्बत में बारहा गुज़रा; कि उस ने हाल भी पूछा तो आँख भर आई; फिर उस की याद में दिल बेक़रार है 'नासिर'; बिछड़ के जिस से हुई शहर शहर रुसवाई। |
तेरे इश्क़ की इंतिहा... तेरे इश्क़ की इंतिहा चाहता हूँ; मेरी सादगी देख क्या चाहता हूँ; सितम हो कि हो वादा-ए-बेहिजाबी; कोई बात सब्र-आज़मा चाहता हूँ; ये जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों को; कि मैं आप का सामना चाहता हूँ; कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहल-ए-महफ़िल; चिराग़-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ; भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी; बड़ा बे-अदब हूँ, सज़ा चाहता हूँ। |
तुम्हारी मस्त नज़र... तुम्हारी मस्त नज़र अगर इधर नहीं होती; नशे में चूर फ़िज़ा इस कदर नहीं होती; तुम्हीं को देखने की दिल में आरजूए हैं; तुम्हारे आगे ही और ऊंची नज़र नही होती; ख़फ़ा न होना अगर बढ़ के थाम लूं दामन; ये दिल फ़रेब ख़ता जान कर नहीं होती; तुम्हारे आने तलक हम को होश रहता है; फिर उसके बाद हमें कुछ ख़बर नहीं होती। |
किया है प्यार जिसे... किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह; वो आशना भी मिला हमसे अजनबी की तरह; बड़ा के प्यास मेरी उस ने हाथ छोड़ दिया; वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल्लगी की तरह; किसे ख़बर थी बड़ेगी कुछ और तारीकी; छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह; कभी न सोचा था हमने "क़तील"उस के लिये; करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह। |
ज़बाँ सुख़न को सुख़न... ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगा; सुख़नकदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगा; नये प्याले सही तेरे दौर में साक़ी; ये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगा; मुझे तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिली; वतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगा; उन्हीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़; ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगा; बदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरना; ये बाग़ साया-ए-सर्द-ओ-समाँ को तरसेगा; हवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिन; ज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा। |
मुमकिन है कि तु... मुमकिन है कि तु जिसको समझता है बहाराँ; औरों की निगाहों में वो मौसम हो ख़िज़ाँ का; है सिल-सिला एहवाल का हर लहजा दगरगूँ; अए सालेक-रह फ़िक्र न कर सूदो-ज़याँ का; शायद के ज़मीँ है वो किसी और जहाँ की; तु जिसको समझता है फ़लक अपने जहाँ का। |