ज़िन्दगी Hindi Shayari

  • काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था;<br/>
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था;<br/>
कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में;<br/>
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।Upload to Facebook
    काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था;
    खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था;
    कहाँ आ गए इस समझदारी के दलदल में;
    वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
  • सबके कर्ज़े चुका दूँ मरने से पहले, ऐसी मेरी नीयत है;<br/>
मौत से पहले तू भी बता दे ज़िंदगी, तेरी क्या कीमत है।Upload to Facebook
    सबके कर्ज़े चुका दूँ मरने से पहले, ऐसी मेरी नीयत है;
    मौत से पहले तू भी बता दे ज़िंदगी, तेरी क्या कीमत है।
  • उम्र-ऐ-जवानी फिर कभी ना मुस्करायी बचपन की तरह;
    मैंने साइकिल भी खरीदी, खिलौने भी लेके देख लिए।
  • लम्हों की खुली किताब हैं ज़िन्दगी;<br/>
ख्यालों और सांसों का हिसाब हैं ज़िन्दगी;<br/>
कुछ ज़रूरतें पूरी, कुछ ख्वाहिशें अधूरी;<br/>
इन्ही सवालों के जवाब हैं ज़िन्दगी।Upload to Facebook
    लम्हों की खुली किताब हैं ज़िन्दगी;
    ख्यालों और सांसों का हिसाब हैं ज़िन्दगी;
    कुछ ज़रूरतें पूरी, कुछ ख्वाहिशें अधूरी;
    इन्ही सवालों के जवाब हैं ज़िन्दगी।
  • सो सुख पा कर भी सुखी न हो;
    पर एक ग़म का दुःख मनाता है;
    तभी तो कैसी करामात है कुदरत की;
    लाश तो तैर जाती है पानी में;
    पर ज़िंदा आदमी डूब जाता है!
  • चाहा है तुझ को तेरी तग़ाफ़ुल के बावजूद;
    ए ज़िन्दगी तू याद करेगी कभी हमें!
  • सफ़र ज़िन्दगी का बहुत ही हसीन है;<br/>

सभी को किसी न किसी की तालाश है;<br/>

किसी के पास मंज़िल है तो राह नहीं;<br/>

और किसी के पास राह है तो मंज़िल नहीं।Upload to Facebook
    सफ़र ज़िन्दगी का बहुत ही हसीन है;
    सभी को किसी न किसी की तालाश है;
    किसी के पास मंज़िल है तो राह नहीं;
    और किसी के पास राह है तो मंज़िल नहीं।
  • तुने तो रुला के रख दिया ए-जिन्दगी​;<br/>जा कर पूछ मेरी माँ से ​ कितने लाडले थे हम...
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    तुने तो रुला के रख दिया ए-जिन्दगी​;
    जा कर पूछ मेरी माँ से ​ कितने लाडले थे हम...
  • ​अपनी ही तरह से परेशान है हर कोई;<br/>
इस तपती  धूंप के लिए कोई दरख़्त नहीं है;<br/> 
किसी के पास खाने के लिये रोटी नहीं है;<br/>
और किसी के पास रोटी खाने का वक़्त नहीं है... Upload to Facebook
    ​अपनी ही तरह से परेशान है हर कोई;
    इस तपती धूंप के लिए कोई दरख़्त नहीं है;
    किसी के पास खाने के लिये रोटी नहीं है;
    और किसी के पास रोटी खाने का वक़्त नहीं है...
  • इन कमबख्त़​ ​जरूर​तो और चाहतों ने मार डाला;​​
    ​कभी ​जरूरतें पूरी नही होती​ तो ​कभी चाह​तें​ बिखर जाती है;​​
    ​कभी चाहतें ​के पीछे भागो तो कभी ​जरूरतों पूरी करों;​
    बस ​इसी में ​तालमेल बिठाते-बिठाते ज़िन्दगी गुज़र जाती है।