हीरों की बस्ती में हमने कांच ही कांच बटोरे हैं; कितने लिखे फ़साने, फिर भी सारे कागज़ कोरे है। |
आराम से कट रही थी तो अच्छी थी; जिंदगी तू कहाँ इन आँखों की बातों में आ गयी! |
दुनियाँ में इतनी रस्में क्यों हैं; प्यार अगर ज़िंदगी है तो इसमें कसमें क्यों हैं; हमें बताता क्यों नहीं ये राज़ कोई; दिल अगर अपना है तो किसी और के बस में क्यों है। |
रफ़्तार कुछ इस कदर तेज़ है जिन्दगी की; कि सुबह का दर्द शाम को, पुराना हो जाता है। |
यहाँ मज़दूर को मरने की जल्दी यूँ भी है; कि ज़िंदगी की कश्मकश में कफ़न महंगा ना हो जाए। |
शायद यह वक़्त हम से कोई चाल चल गया; रिश्ता वफ़ा का और ही रंगों में ढ़ल गया; अश्क़ों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप ही; चलो उसी मोड़ से शुरू करें फिर से जिंदगी । |
तु ही बता ए ज़िंदगी; इस ज़िंदगी का क्या होगा; कि हर पल मरने वालों को; जीने के लिए भी वक़्त नहीं। |
ज़िंदगी हसीं है इससे प्यार करो; हर रात की नयी सुबह का इंतज़ार करो; वो पल भी आएगा, जिसका आपको इंतज़ार है; बस अपने रब पर भरोसा और वक़्त पर ऐतबार करो। |
रूठी सी ज़िन्दगी को मनाना तो आता है; लोगों को हँसाना तो आता है; क्या हुआ जो न बस सके किसी के दिल में; लोगों को अपने दिल में बसाना तो आता है। |
जीवन में ज़ख्म बड़े नहीं होते हैं; उनको भरने वाले बड़े होते हैं; रिश्ते बड़े नहीं होते हैं; लेकिन रिश्तों को निभाने वाले बड़े होते हैं। |