तुझ से बिछड़ कर भी ज़िंदा था; मर मर कर ये ज़हर पिया है! चुप रहना आसान नहीं था; बरसों दिल का ख़ून किया है! जो कुछ गुज़री जैसी गुज़री; तुझ को कब इल्ज़ाम दिया है! अपने हाल पे ख़ुद रोया हूँ; ख़ुद ही अपना चाक सिया है! कितनी जाँकाही से मैं ने; तुझ को दिल से महव किया है! सन्नाटे की झील में तू ने; फिर क्यों पत्थर फेंक दिया है! |
आगे आती थी हाल-ए-दिल पे हँसी; अब किसी बात पर नहीं आती! है कुछ ऐसी ही बात जो चुप हूँ; वर्ना क्या बात कर नहीं आती!! |
इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना; दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना! |
दर्द जब दिल में हो तो दवा दीजिए; दिल ही जब दर्द हो तो क्या कीजिए! |
तेरे पास से जो गुज़रे तो जूनून में थे; जब दूर जाके सोचा तो ज़ार-ज़ार रोये! |
रफ़्ता रफ़्ता ये पल भी गुज़र जाएगा, शाम होते ही परिंदा सज़र जाएगा; जरूरी नहीं हर आशिक़ को जहर ही पिलाना, इश्क़ में है वो ख़ुद तड़प के मर जाएगा! |
ये कफ़न ये कब्र ये जनाज़े रस्म-ऐ-शरियत है इक़बाल; मर तो इन्सान तभी जाता है जब कोई याद करने वाला ना हो! |
मैंने तो वो खोया जो मेरा कभी था ही नहीं, पर तुमने तो वो खोया जो हमेशा से सिर्फ तुम्हारा ही था! |
मोहब्बत का रिश्ता कितना अजीब है साहब; दिल तकलीफ़ में है, और तकलीफ़ देने वाला दिल में! |
दिल ने सोचा था कि टूट कर चाहेंगे उसे; सच मानो.. टूटे भी बहुत और चाहा भी बहुत..! |