बिछड़ के तुम से ज़िन्दगी सजा लगती है; यह साँस भी जैसे मुझ से खफा लगती है; तड़प उठते हैं दर्द के मारे; ज़ख्मों को मेरे जब तेरे दीदार की हवा लगती है। |
तुम भी कर के देख लो मोहब्बत किसी से; जान जाओगे कि हम मुस्कुराना क्यों भूल गए। |
निगाहों से भी चोट लगती है जनाब, जब कोई देख कर भी अनदेखा कर देता है। |
मेरे प्यार को वो समझ नहीं पाया; रोते थे जब बैठ तनहा तो कोई पास नहीं आया; मिटा दिया खुद को किसी के प्यार में; तो भी लोग कहते हैं कि मुझे प्यार करना नहीं आया। |
मशरूफ रहने का अंदाज़ तुम्हें तनहा ना कर दे 'ग़ालिब'; रिश्ते फुर्सत के नहीं तवज्जो के मोहताज़ होते हैं। |
उदासियों के सन्नाटे बड़े एहतराम से रहते मुझ में; अब दिल भी धड़कता है तो शोर लगता है। |
रिश्ते बनते और बिगड़ते रहते हैं; लोग सफ़र में मिलते बिछड़ते रहते हैं; शायर क्या जानेगे दौलत का हुनर; लफ़्ज़ों की दुनिया में उलझे रहते हैं। |
आरज़ू यह नहीं कि ग़म का तूफ़ान टल जाये; फ़िक्र तो यह है कि कहीं आपका दिल न बदल जाये; कभी मुझको अगर भुलाना चाहो तो; दर्द इतना देना कि मेरा दम निकल जाये। |
पा लिया था दुनिया की सबसे हसीन को; इस बात का तो हमें कभी गुरूर न था; वो रह पाते पास कुछ दिन और हमारे; शायद यह हमारे नसीब को मंज़ूर नहीं था। |
ये नज़र नज़र की बात है कि किसे क्या तलाश है; तू हँसने को बेताब है मुझे तेरी मुस्कुराहटों की प्यास है। |