साकी और शराब Hindi Shayari

  • जब भी उमड़े हैँ सैलाब तेरे तसव्वुर के,<br/>
मयख़ाना गवाह है कैसे हर जाम बेअसर हुआ है!Upload to Facebook
    जब भी उमड़े हैँ सैलाब तेरे तसव्वुर के,
    मयख़ाना गवाह है कैसे हर जाम बेअसर हुआ है!
  • आये थे हँसते खेलते मैख़ाने में 'फ़िराक़';<br/>
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए!
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    आये थे हँसते खेलते मैख़ाने में 'फ़िराक़';
    जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए!
    ~ Firaq Gorakhpuri
  • ना बात कर पीने पिलाने की, मेरा ग़ज़लों में मयखाना है;<BR/>
मैं शायर भी पुराना हूँ, और मेरा तज़ुर्बा भी पुराना है|Upload to Facebook
    ना बात कर पीने पिलाने की, मेरा ग़ज़लों में मयखाना है;
    मैं शायर भी पुराना हूँ, और मेरा तज़ुर्बा भी पुराना है|
  • आये थे हँसते खेलते मैख़ाने में 'फ़िराक़';<br/>
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए!Upload to Facebook
    आये थे हँसते खेलते मैख़ाने में 'फ़िराक़';
    जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए!
    ~ Firaq Gorakhpuri
  • मयखाने की इज़्ज़त का सवाल था हुज़ूर,<br/>

सामने से गुज़रे तो, थोडा सा लड़खड़ा दिए!Upload to Facebook
    मयखाने की इज़्ज़त का सवाल था हुज़ूर,
    सामने से गुज़रे तो, थोडा सा लड़खड़ा दिए!
  • कर दो तब्दील अदालतों को मय खानों में;<br/>
सुना है नशे में कोई झूठ नहीं बोलता!Upload to Facebook
    कर दो तब्दील अदालतों को मय खानों में;
    सुना है नशे में कोई झूठ नहीं बोलता!
  • या हाथों हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय;<br/>
या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ!<br/><br/>

मानिंद-ए-जाम-ए-मय: शराब के पात्र की तरहUpload to Facebook
    या हाथों हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय;
    या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ!

    मानिंद-ए-जाम-ए-मय: शराब के पात्र की तरह
    ~ Meer Taqi Meer
  • या हाथों हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय;<br/>
या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ!Upload to Facebook
    या हाथों हाथ लो मुझे मानिंद-ए-जाम-ए-मय;
    या थोड़ी दूर साथ चलो मैं नशे में हूँ!
    ~ Meer Taqi Meer
  • एक पल में ले गई सारे ग़म खरीदकर;<br/>
कितनी अमीर होती है ये बोतल शराब की।Upload to Facebook
    एक पल में ले गई सारे ग़म खरीदकर;
    कितनी अमीर होती है ये बोतल शराब की।
  • क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ;<br/>
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।Upload to Facebook
    क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हाँ;
    रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन।
    ~ Mirza Ghalib