क्या बताए ग़ालिब वो गुस्से में भी हम पे रहम कर गई; लगाया कस के चांटा और सर्दी में गाल गरम कर गई। |
मेरे इश्क की बोलिंग ने उसके दिल की विकेट बहुत उम्दा तरीके से गिराई; तकदीर ऐसी हमारी, अंपायर उसका बाप निकला, जिसने ऊँगली नहीं उठाई! |
धन से बेशक गरीब रहो पर दिल से रहना धनवान; अक्सर झोपडी पे लिखा होता है सुस्वागतम; और महल वाले लिखते है कुत्ते से सावधान। |
हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी, कि हर ख्वाहिश पे Rum निकले; जी भर के कभी ना पी पाया, क्योंकि जेब में पैसे कम निकले। |
जब तुम अंगडाई लेते हो, हमारा दम निकल जाता है; ऐ ज़ालिम, ये बता नहाने में तुम्हारा क्या जाता है। |
तेरे ग़म में तड़प कर मर जायेंगे; मर गए तो तेरा नाम ले जायेंगे; रिश्वत देकर तुझे भी बुलायेंगे; तुम ऊपर आओगे तो साथ बैठकर कुरकुरे खायेंगे। |
हीर रो-रो कर रांझे से कह रही है; हीर रो-रो कर रांझे से कह रही है; . . . . . हाथ छोड़ कमीने मेरी नाक बह रही है। |
न वफ़ा का ज़िक्र होगा; न वफ़ा की बात होगी; अब मोहब्बत जिस से भी होगी; राखी के बाद होगी। |
हमारे ऐतबार की हद ना पूछ ग़ालिब; उसने दिन को रात कहा और हमने पैग बना लिया। |
तुम्हारी अदाओं पे मैं वारी-वारी; तुम्हारी अदाओं पे मैं वारी-वारी; क्या उधर लाइट आ री? इधर तो आ री - जा री, आ री - जा री! |