तेरी निगाह दिल से जिगर तक उतर गयी; दोनों को ही एक-अदा में रजामंद कर गई! |
अल्लाह-रे तेरे सिलसिला-ए-ज़ुल्फ़ की कशिश; जाता है जी उधर ही खिंचा काएनात का! |
उनकी जुल्फों की खूबसूरती और बढ़ गई; जब एक गुलाब उनके बालो में सज गई! |
होठ नहीं, आँखे दगा करती हैं; यहीं तो छिपे इश्क को बयाँ करती हैं! |
मैं चाहता था कि उस को गुलाब पेश करूँ; वो ख़ुद गुलाब था उस को गुलाब क्या देता! |
बिना पूछे ही सुलझ जाती हैं सवालों की गुत्थियाँ; कुछ आँखें इतनी हाज़िर-जवाब होती हैं। |
हुस्न वालों को संवरने की क्या जरूरत है; वो तो सादगी में भी क़यामत की अदा रखते हैं। |
खुद न छुपा सके वो अपना चेहरा नकाब में; बेवजह हमारी आँखों पे इल्ज़ाम लग गया! |
गिरता जाता है चेहरे से नकाब अहिस्ता-अहिस्ता; निकलता आ रहा है आफ़ताब अहिस्ता-अहिस्ता! |
आज तेरे चेहरे की बात हो जाए; जिक्र-ए- गुलाब रहने दो! |