कहाँ-कहाँ से इकट्ठा करूँ, ऐ ज़िंदगी तुझको, जिधर भी देखूँ, तू ही तू बिखरी पड़ी है। |
उन्होंने कहा, बहुत बोलते हो, अब क्या बरस जाओगे; हमने कहा, चुप हो गए तो तुम तरस जाओगे! |
किसी के ज़ख्म का मरहम, किसी के ग़म का ईलाज; लोगों ने बाँट रखा है मुझे, दवा की तरह। |
आदत बना ली मैंने खुद को तकलीफ देने की; ताकि जब कोई अपना तकलीफ दे तो ज्यादा तकलीफ ना हो! |
अक्सर वो फैंसले मेरे हक़ में गलत हुए; जिन फैंसलों के नीचे तेरे दस्तखत हुए! |
कल तुझसे बिछड़ने का फैंसला कर लिया था; आज अपने ही दिल को रिश्वत दे रहा हूँ! |
आया था एक शख्स मेरा दर्द बाँटने; रुखसत हुआ तो अपना भी गम दे गया मुझे! |
फ़क्र ये कि तुम मेरे हो; फ़िक्र ये कि पता नहीं कब तक। |
मैंने समंदर से सीखा है जीने का सलीक़ा; चुप-चाप से बहना, अपनी मौज में रहना। |
निगाहों में कोई भी दूसरा चेहरा नहीं आया; भरोसा ही कुछ ऐसा था तुम्हारे लौट आने का! |