इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह; बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है! |
कटती है आरज़ू के सहारे पे ज़िंदगी; कैसे कहूँ किसी की तमन्ना न चाहिए! |
उफ्फ वो मरमर से तराशा हुआ शफ़्फ़ाफ़ बदन; देखने वाले उसे ताज-महल कहते हैं! * शफ़्फ़ाफ़: निर्मल |
नहीं दुनिया को जब परवाह हमारी; तो फिर दुनिया की परवाह क्यों करें हम! |
बूढ़ों के साथ लोग कहाँ तक वफ़ा करें; बूढ़ों को भी जो मौत न आए तो क्या करें! |
हवा के दोश पे रखे हुए चिराग़ हैं हम; जो बुझ गए तो हवा से शिकायतें कैसी! |
देखा नहीं वो चाँद सा चेहरा कई दिन से; तारीक नज़र आती है दुनिया कई दिन से! |
देने वाले की मशिय्यत पे है सब कुछ मौक़ूफ़; माँगने वाले की हाजत नहीं देखी जाती! |
सब एक चिराग के परवाने होना चाहते हैं; अजीब लोग हैं दीवाने होना चाहते हैं! |
हया नहीं है ज़माने की आँख में बाक़ी; ख़ुदा करे कि जवानी तेरी रहे बे-दाग़! |