बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर; पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर! |
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी; साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में! *तिश्नगी: प्यास |
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह; बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है! |
जब भी सुलझाना चाहा जिंदगी के सवालों को मैंने; हर एक सवाल में जिंदगी मेरी उलझती चली गई। |
जिन्दगी में दो मिनट जिन्दगी में दो मिनट कोई मेरे पास न बैठा; आज सब मेरे पास बैठे जा रहे थे; कोई तौफा ना मिला आज तक मुझे; और आज फूल ही फूल दिए जा रहे थे; तरस गया मैं किसी के हाथ से दिए एक कपडे को; और आज नये-नये कपडे ओढ़ाए जा रहे थे; दो कदम साथ ना चलने वाले; आज काफिला बन कर चले जा रहे थे; आज पता चला कि मौत कितनी हसीन होती है; हम तो अस यूँ ही जिए जा रहे थे। |
रेत पर नाम लिखते नहीं; रेत पर लिखे नाम कभी टिकते नहीं; लोग कहते हैं पत्थर दिल हैं हम; लेकिन पत्थरों पर लिखे नाम कभी मिटते नहीं। |
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से; इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे। |