बेचैन इस क़दर था कि सोया न रात भर; पलकों से लिख रहा था तेरा नाम चाँद पर! |
पीता हूँ जितनी उतनी ही बढ़ती है तिश्नगी; साक़ी ने जैसे प्यास मिला दी शराब में! *तिश्नगी: प्यास |
इस भरोसे पे कर रहा हूँ गुनाह; बख़्श देना तो तेरी फ़ितरत है! |
रेत पर नाम लिखते नहीं; रेत पर लिखे नाम कभी टिकते नहीं; लोग कहते हैं पत्थर दिल हैं हम; लेकिन पत्थरों पर लिखे नाम कभी मिटते नहीं। |
लिपट जाते हैं वो बिजली के डर से; इलाही ये घटा दो दिन तो बरसे। |