किन लफ्जों में लिखूँ, मैं अपने इन्तजार को तुम्हें; बेजुबां हैं इश्क़ मेरा, और ढूँढता हैं खामोशी से तुझे! |
करते नहीं इज़हार फिर क्यों करते हो तुम प्यार, नज़रों से बातें बहुत हुई अब लब से करो इकरार। |
हमने हमारे इश्क़ का इज़हार यूँ किया; फूलों से तेरा नाम पत्थरों पे लिख दिया। |
उसको चाहा दिल-ओ-जान से पर इज़हार करना नहीं आया; कट गयी सारी उम्र मगर हमें इश्क़ करना नहीं आया; उसने हमसे कुछ माँगा भी तो माँग ली जुदाई; इश्क़ में उसके डूबे थे हम इस कदर कि हमें इंकार करना नहीं आया। |
मिला वो भी नहीं करते मिला मैं भी नहीं करता; वफ़ा वो भी नहीं करते वफ़ा मैं भी नहीं करता; ये भी सच है कि मोहब्बत उन्हें भी है मोहब्बत मुझे भी है; मगर इज़हार वो भी नहीं करते इक़रार मैं भी नहीं करता। |
जज़्बात मेरे कहीं कुछ खोये हुए से हैं; कहूँ कैसे हम उनसे थोड़ा शर्माए हुए से हैं; पर आज न रोक सकूंगा जज़्बातों को मैं अपने; करते हैं प्यार हम उनसे पर थोड़ा घबराये हुए से हैं। |
कैसे कहूँ कि अपना बना लो मुझे; निगाहों में अपनी समा लो मुझे; आज हिम्मत कर के कहता हूँ; मैं तुम्हारा हूँ अब तुम ही संभालो मुझे। |
नजऱ का नजऱ से मिलना कभी पयार नही होता; कहीं पे रुक जाना किसी का इंतज़ार नही होता; अरे प्यार तब तक नही होता, जब तक इजहार नही होता। |
उस के साथ रहते रहते हमें चाहत सी हो गयी; उससे बात करते करते हमें आदत सी हो गयी; एक पल भी न मिले तो न जाने बेचैनी सी रहती है; दोस्ती निभाते निभाते हमें मोहब्बत सी हो गयी। |
तेरे हाथों में मुझे अपनी तक़दीर नज़र आती है; देखूं मैं जो भी चेहरा तेरी तस्वीर नजर आती है। |