आज हर ख़ामोशी को मिटा देने का मन है; जो भी छिपा रखा है मन में लूटा देने का मन है! |
मयखाने से पूछा आज, इतना सन्नाटा क्यों है, मयखाना भी मुस्कुरा के बोला, लहू का दौर है साहब, अब शराब कौन पीता है! |
कभी तो कोई ख़ुशी चखा ऐ ज़िंदगी; तुझसे किसने कह दिया के हमारा रोज़ा है! |
एक ही बात सीखी है रंगों से; ग़र निखरना है तो बिखरना ज़रूरी है! |
बरसो बाद आज, तेरे करीब से गुज़रे; जो न संभलते, तो गुज़र ही जाते! |
मेरे शहर में खुदाओं की कमी नहीं, दिक्कत मुझे इंसान ढूँढने में होती है। |
फुर्सत मिली तो तुझ पर भी एक कलाम लिखेंगे, कभी आना मेरे शहर एक शाम तुम्हारे नाम लिखेंगे! |
हर रिश्ते में अमृत बरसेगा, शर्त इतनी है कि; शरारतें करो पर, साजिशे नहीं! |
वो आ के पहलू में ऐसे बैठे, के शाम रंगीन हो गयी है, ज़रा-ज़रा-सी खिली तबीयत, ज़रा-सी ग़मगीन हो गयी है! |
लफ़्ज़ों के भी ज़ायक़े होते हैं, परोसने से पहले चख भी लेना चाहिए! |